अस्पतालों में नहीं मिलते डाक्टर, मरीज होते हैं परेशान

डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है, क्योंकि ¨जदगी की टूटती डोर को वे ही बांधते हैं। मरते व्यक्ति की आस केवल इनसे ही रहती है। मेडिकल साइंस पर रोजाना नए शोध, इलाज के तरीके और असाध्य बीमारियों के इलाज के इजात तरीके का ही परिणाम है कि बीमार को अपने जीवन की उम्मीद केवल डाक्टरी हाथों में ही दिखती है। स्वस्थ्य समाज ही विकास का द्योतक भी है। लेकिन सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुवाएं मिलें, इसका सपना सूबे के सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले जनपद सोनभद्र में अभी अधूरा ही है। कारण कि यहां धरती के भगवान को सोनांचल के जंगल व पहाड़ वाले इलाके नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी चाहिए।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 Dec 2018 09:32 PM (IST) Updated:Tue, 11 Dec 2018 09:32 PM (IST)
अस्पतालों में नहीं मिलते डाक्टर, मरीज होते हैं परेशान
अस्पतालों में नहीं मिलते डाक्टर, मरीज होते हैं परेशान

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : डॉक्टरों को धरती का भगवान कहा जाता है क्योंकि ¨जदगी की टूटती डोर को वे ही बांधते हैं। मरते व्यक्ति की आस केवल इनसे ही रहती है। मेडिकल साइंस पर रोजाना नए शोध, इलाज के तरीके और असाध्य बीमारियों के इलाज के इजात तरीके का ही परिणाम है कि बीमार को अपने जीवन की उम्मीद केवल डाक्टरी हाथों में ही दिखती है। स्वस्थ्य समाज ही विकास का द्योतक भी है। लेकिन सभी को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, इसका सपना सूबे के सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले जनपद सोनभद्र में अभी अधूरा ही है। कारण कि यहां धरती के भगवान को सोनांचल के जंगल व पहाड़ वाले इलाके नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी चाहिए।

जी हां, कहने व सुनने में थोड़ा अटपटा जरूर लग रहा है कि धरती का भगवान यानि डाक्टर को जंगल, पहाड़ या गरीबों का इलाका नहीं बल्कि स्मार्ट सिटी पसंद है, लेकिन है बिल्कुल सत्य। देश के 115 आकांक्षात्मक जनपदों में शामिल सोनभद्र में चिकित्सकों की स्थिति देखकर तो यहीं लगता है कि यहां सरकारी चिकित्सक रहना ही नहीं चाहते। विभागीय सूत्रों की मानें तो जिले में कुल 122 चिकित्सकों के पद सृजित हैं। इनमें से कागज पर सौ से अधिक की तैनाती है। लेकिन वास्तव में इतने काम नहीं करते। बीते कुछ वर्षों से यहां के 18 डाक्टर बगैर किसी सूचना के गायब हैं। इसकी तो सूचना भी शासन को चली गई है। वहीं 18 चिकित्सक ऐसे हैं जो तैनात होने के बाद पीजी करने के बहाने जिले से बाहर हैं। वहीं चार ने तो त्यागपत्र भी दे दिया।

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मुख्यालय से आना-जाना पसंद करते हैं

जिले के तमाम पीएचसी, सीएचसी व अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात चिकित्सकों में से ज्यादातर चिकित्सक मुख्यालय पर ही रहना चाहते हैं। यहां से प्रतिदिन अस्पताल जाते हैं। यानि अगर वहां रात में कोई समस्या आए तो लोगों को जिला अस्पताल या किसी प्राइवेट अस्पताल में ही रहना पड़ता है। सूत्रों की मुताबिक बीते माह में एक चिकित्सक की तैनाती जिले में हुई तो उन्हें एक सीएचसी संभालने की जिम्मेदारी मिली। वहां आवास होने के बावजूद वह प्रतिदिन मुख्यालय से आना-जाना शुरू कर दिए। जब विभागीय अधिकारियों ने टिप्प्णी किया तो वहां के किसी गेस्टहाउस में रहकर अस्पताल की जिम्मेदारी संभालने लगे। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नई बाजार, बड़गवां, गुरमुरा, अमवार, कुवारी, कटौली आदि स्थानों पर संचालित होने वाले अस्पताल के डाक्टर अन्यत्र से ड्यूटी करने जाते हैं।

.......... डावांडोल है चिकित्सा व्यवस्था

करीब 20 लाख से अधिक की आबादी वाले जिले में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए वैसे तो पर्याप्त धन खर्च किया गया है, लेकिन अभी भी स्थिति ठीक नहीं है। यहां कहीं का अस्पताल का वर्षों से निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है तो कहीं बगैर संपूर्ण व्यवस्था किए ही कागजों में संचालन शुरू कर दिया गया है। चतरा सीएचसी का निर्माण बीते नौ साल से हो रहा है। इसी तरह जिला अस्पताल के समीप वर्षों के से बनकर तैयार ट्रामा सेंटर का संचालन आज तक नहीं हो सका। ऐसे में लोगों को इलाज के लिए वाराणसी जाना पड़ता है।

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बोले अधिकारी..

जो डाक्टर बगैर बताए गायब हैं उनकी सूचना शासन को भेज दी गई है। कुछ चिकित्सक पीजी करने के लिए जिले से बाहर हैं। बीते महीनों में चार चिकितसकों ने त्यागपत्र दे दिया है। पूर्व में कुछ अस्पतालों में आवासीय भवन बनाए बिना ही वहां चिकित्सकों की तैनाती कर दी गई। इस वजह से वे वहां नहीं रहते। कई जगह बिजली, पानी व अन्य संसाधन उपलब्ध नहीं है। इस लिए वहां तैनात होने वाले चिकित्सक मुख्यालय या पास के किसी शहर में रहना पसंद करते हैं।

- डा. एसपी ¨सह, सीएमओ-सोनभद्र।

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