पराली के जलने से धरती का सुरक्षा कवच खतरे में
सोनभद्र: जाने-अनजाने में इंसानों की कुछ गतिविधियां वातावरण को नष्ट करने में सहायक होने लगी हैं। इसका असर यह हुआ है कि धरती ही नहीं अब वायुमंडल के हिस्से भी प्रभावित होने लगे हैं। उसके बाद उपजी समस्या से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होने लगा है। इंसानों के साथ जमीन व हवा पर खतरा साफ-साफ दिखने लगा है।
जागरण संवाददाता, सोनभद्र: जाने-अनजाने में इंसानों की कुछ गतिविधियां वातावरण को नष्ट करने में सहायक होने लगी हैं। इसका असर यह हुआ है कि धरती ही नहीं अब वायुमंडल के हिस्से भी प्रभावित होने लगे हैं। उसके बाद उपजी समस्या से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होने लगा है। इंसानों के साथ जमीन व हवा पर खतरा साफ-साफ दिखने लगा है।
दरअसल, देश के कृषि आधारित व्यवस्था में आधुनिकता का बेतहाशा प्रवेश सुविधाओं के साथ कई समस्याएं भी उत्पन्न कर रहा है। इसमें प्रमुख रूप से पराली के जलने के बाद उत्पन्न गैसें शामिल हैं। पराली, धान व गेहूं का अवशेष है। इसे वर्तमान में किसान खेतों में जला देते हैं। कृषि विभाग के डा. पंकज मिश्र के मुताबिक पराली जलने कार्बन मोनो आक्साइड व कार्बन डाई आक्साइड गैस निकलती है। ये गैसें हरित ग्रीन प्रभाव व ओजोन परत को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं। इस संबंध में बीएचयू के कृषि विज्ञान केंद्र में वैज्ञानिक डा. जेपी राय ने बताया कि ओजोन परत के अणुओं को नष्ट करने में पराली के जलने से निकलने वाली गैसें भी जिम्मेदार हैं। या यूं कहें तो इससे तो पूरा चक्र ही गड़बड़ा जा रहा है। बता दें कि इसके जलने से मिट्टी गरम हो रही है। मिट्टी में मौजूद जीवांश मर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मिट्टी में 70 फीसद किसान मित्र जीव रहते हैं और यही जीव 30 फीसद शत्रु जीव से फसलों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
ऐसी उत्पन्न होती त्रासदी से मुक्त होने के लिए शिक्षा क्षेत्र को जोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया गया है। इसमें अब नौवीं से 12 वीं तक के बच्चों के बीच पराली व पर्यावरण से जुड़े पें¨टग व लेखन प्रतियोगिता होगी। इस संबंध में डीआइओएस राजशेखर ¨सह ने बताया कि इस प्रतियोगिता का मुख्य मकसद छात्रों के जरिए घरों व किसानों के बीच पराली व उससे जुड़ी समस्याओं की जानकारी पहुंचाना है। बता दें कि इसके लिए जनपद के सभी तहसीलों के तीन विद्यालयों को चुना गया है। क्या कहता है आंकड़ा
आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के अनुसार, 1960-61 के दशक में खेती में मशीनों का उपयोग सात फीसद व पशुओं का उपयोग 90 फीसद था। वहीं अब पैमाना उलट गया है। पशुओं का गिरना ग्राफ भी पराली से उभरने वाली समस्याएं जिम्मेदार है। मशीनीकरण के साथ समस्याओं को कम करने के उपायों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया। क्या बोले अधिकारी
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सूर्य की पराबैगनी किरणें त्वचा कैंसर को जन्म देने में सहायक हैं। इसके साथ ही दूसरी गैसें जैसे कार्बन मोनो आक्साइड व कार्बन डाई आक्साइड खांसी व अस्थमा की बीमारी के लिए कारक हो रही हैं। ऐसे में उन सभी क्रियाओं पर रोक लगाने की जरूरत है जो ऐसी गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
-एसपी ¨सह, सीएमओ, सोनभद्र।
ऐसा भी नहीं की पराली गुणकारक नहीं
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एक टन पराली - 5.50 किलो नाइट्रेजन
- 2.3 किलो सल्फर
- 25 किलो पोटैशियम
व आर्थोसिलिक एसिड प्राप्त किया जा सकता है।