दस किमी दूर मतदान स्थल जाना मजबूरी
लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आज भी सोनभद्र के आदिवासियों को जान जोखिम में भी डालना पड़ता है। रेणुकापार के हजारों आदिवासियों के लिए मतदान शारीरिक कष्ट के साथ मौत को दावत देने जैसा होता है।
जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए आज भी सोनभद्र के आदिवासियों को जान जोखिम में भी डालना पड़ता है। रेणुकापार के हजारों आदिवासियों के लिए मतदान शारीरिक कष्ट के साथ मौत को दावत देने जैसा होता है। तमाम पार्टियों के लंबे चौड़े वादों के बीच मतदान करने लिए भयंकर नदी-नालों के साथ ऊंचे पहाड़ को पार कर 10 किमी से ज्यादा की लंबी दूरी तय करने की मजबूरी आदिवासियों को लोकतंत्र का सबसे बड़ा रक्षक बनाता है। रेणुकापार के 90 फीसदी से ज्यादा क्षेत्र में पहाड़ी, नदी नाले मौजूद है। अभी भी 50 से ज्यादा टोलों तक सड़क मार्ग नहीं है जिसके कारण आदिवासी मतदाताओं को मतदान स्थल जाने के लिए अमूमन पैदल ही सफर करना पड़ता है। रेणुकापर के जुगैल, पनारी, बैरपुर, कनहरा, परसोई, कनहरा सहित दर्जनों ग्राम पंचायतों के दर्जनों टोलों का मतदान स्थल पांच से 10 किमी के दूर है। पनारी ग्राम पंचायत के चंचलिया के मतदाताओं को 12 किलोमीटर दूर चकाड़ी में तथा अमरस्त्रोता का 10 किमी दूर खैराही में मतदान स्थल है। इसी पंचायत के बभनी, पल्सो, शिउर, कर्री, भोड़ार, बकिया, धनबहवा, छ्त्तादांड, अदराकुदर, चालाकी सहित कई दर्जन गांव का मतदान स्थल सात किमी से ज्यादा दूर है। जुगैल ग्राम पंचायत के हसरा, बुट्टी और चरका के मतदाताओं आठ किमी से ज्यादा दूर बेलगढ़ी, चाडम के लोगों को छह किमी दूर भीतरी जाना पड़ता है। जुगैल के ही कोठीपियार टोला का मतदान स्थल सात किमी दूर पिपरा में, पुशरेव का पांच किमी दूर गर्दा में है। खोरिया के कुछ मतदाताओं को 10 किमी दूर भितरी जाना पड़ता है। ग्राम पंचायत अगोरी के करजी टोला का मतदान स्थल पांच किमी दूर अगोरी खास में है। इसी तरह जुर्रा और अमश्रोता के कुछ परिवारों का मतदान स्थल ओबरा डैम पार नींगा और गुरुमुरा में मौजूद है।