बिल्ली-मारकुंडी की बंद पड़ी एक खदान धंसी
जासं ओबरा (सोनभद्र) सोमवार देर रात हुयी भारी बारिश के कारण बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र की बंद पड़ी एक खदान का हिस्सा मंगलवार को भसक गया। सैकड़ो टन भारी हिस्सा बगल की एक चालू खदान में गिरा। हालाकि भारी बारिश के कारण उक्त खदान में काम बंद था। उस समय खदान के
जासं, ओबरा (सोनभद्र) : सोमवार देर रात हुई भारी बारिश के कारण बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र की बंद पड़ी एक खदान का हिस्सा मंगलवार को धंस गया। सैकड़ों टन भारी हिस्सा बगल की एक चालू खदान में गिरा। हालांकि भारी बारिश के कारण उक्त खदान में काम बंद था। उस समय खदान के अन्य हिस्सों में ड्रीलिग और विस्फोटक भरने का काम चल रहा था। घटना दिन में 10.30 बजे के करीब की है। बंद पड़ी खदान का मलबा राजेश केशरी, तारकेश्वर प्रसाद के चालू खदान में जाने वाले रास्ते पर गिरा, जिसके कारण रास्ते पर खड़ी एक मोटरसाइकिल भी मलबे में दब गई। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो दिन में 11 बजे जब खदान धंसने की तेज आवाज आयी तो आसपास हड़कंप मच गया। जिस हिस्से में मलबा गिरा वहां आम दिनों में भारी संख्या में बोल्डर भी उसी रास्ते से जाता था। संजोग अच्छा था कि रात में हुई बारिश के कारण बंद चल रहे काम के कारण परिवहन का काम बंद था नहीं तो बड़ी घटना से इन्कार नहीं किया जा सकता था। खदान के अन्य हिस्से में आधा दर्जन के करीब मजदूर ब्लास्टिग संबंधी कार्य कर रहे थे। घटना के बाद सभी दूसरे हिस्से में भागने लगे।
सूचना पर पहुंचे ओबरा सीओ भास्कर वर्मा एवं थाना प्रभारी शैलेश कुमार राय ने घटनास्थल का निरीक्षण किया। घटना के बावजूद खदान के अन्य हिस्सों में विस्फोटक भरे होने के कारण तय समय पर विस्फोट किया गया। समाचार लिखे जाने तक मलबा हटाने का कार्य जारी था। जिस खदान का मलबा गिरा उक्त खदान वर्ष 2013 से लीज सीमा पूरी होने के कारण बंद पड़ी है। बीते 28 फरवरी को भी एक खदान के धंसने के कारण जहां पांच लोगों की मौत हुईं थी। 27 फरवरी 2012 में हुई घटना में 12 मजदूरों की मौत हुई थी।
चट्टानों की बनावट बन रही मुसीबत
बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र की खदानों में मौजूद चट्टानों की बनावट के साथ खनन के तरीके चट्टानों के धंसने का कारण बन रहे हैं। इस क्षेत्र की कई खदानों की चट्टानें डोलोमाइट होने के बावजूद परतदार शैली की है। सबसे खतरनाक पहलू यह है कि सभी परतें लगभग 45 डिग्री के आसपास उत्तर या दक्षिण दिशा की ओर झुकी हुई है। इन परतों में जब नमी की अधिकता होती है तो इनके सरकने की संभावना होती है। खासकर खदानों में बेंच बनाने की खत्म हुई परम्परा ने चट्टानों के धंसने की नींव तैयार कर दी है। चालू वर्ष के 28 फरवरी तथा 27 फरवरी 2012 को खदानों के धंसने में यही कारण सामने आया था। सोमवार कीदेर रात भारी बारिश के कारण नमी इतनी ज्यादा थी कि चट्टानों से पानी का रिसाव हो रहा था। जो घटना का बड़ा कारण बना। साथ ही खदानों का काफी गहरा होना भी बड़े कारणों में एक है।