जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए लड़ाई दिलचस्प

31 सदस्यों वाली जिला पंचायत में अध्यक्ष की कुर्सी के लिए किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है। समाजवादी पार्टी के समर्थित सबसे अधिक सदस्य इस बार जिला पंचायत के सदन में पहुंचेंगे इसलिए सपा इसे खोना नहीं चाहेगी। वहीं भाजपा हर हाल में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाह रही हैं।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 07 May 2021 04:34 PM (IST) Updated:Fri, 07 May 2021 04:34 PM (IST)
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए लड़ाई दिलचस्प
जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए लड़ाई दिलचस्प

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : 31 सदस्यों वाली जिला पंचायत में अध्यक्ष की कुर्सी के लिए किसी भी दल के पास बहुमत नहीं है। समाजवादी पार्टी के समर्थित सबसे अधिक सदस्य इस बार जिला पंचायत के सदन में पहुंचेंगे इसलिए सपा इसे खोना नहीं चाहेगी। वहीं भाजपा हर हाल में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपना कब्जा बरकरार रखना चाह रही हैं। कांग्रेस व बसपा इस बार पूरे खेल में कहीं नहीं दिखते। जिले की सबसे बड़ी कुर्सी अपने पाले में करने के लिए इस बार निर्दल निर्णायक साबित होंगे।

जिले की 31 सीटों पर एक नजर डालें तो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला नतीजा भाजपा के लिए रहा। ऐसा समझा जा रहा था कि इस चुनाव में पार्टी की प्रतिष्ठा के लिए विधायक से लेकर पार्टी के कद्दावर नेता अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है। विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले रखी थी। भाजपा के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने एक रणनीति के तहत यह मान लिया था कि उनकी झोली में 25 सीट आनी है। भाजपा अपने होमवर्क के बलबूते सदर व घोरावल के अधिकांश जिला पंचायत सीट पर जीत दर्ज करने का सपना संजोए हुई थी। पिछले तीन महीने की कवायद के बावजूद भाजपा महज छह सीटों पर सिमट कर रह गई। भाजपा के लिए जितना चौंकाने वाला यह नतीजा रहा, वहीं भाजपा ने ताजपोशी की अगली रणनीत तय कर प्रतिद्वंद्वियों को चौंकने के लिए मजबूर कर दिया। रणनीतिकार मानते हैं कि सपा जिला पंचायत के चुनाव में बाजी मार ले गई। इसके साथ वह चुनौती भी देते हैं कि अभी लड़ाई खत्म कहां हुई, जिला पंचायत अध्यक्ष की लड़ाई में भाजपा ही सबसे आगे है। उनके पास कई निर्दलीय और कई दूसरे दलों के जीते सदस्य संपर्क में हैं। सत्ता पक्ष के चुनौती को समाजवादी पार्टी के लोग स्वीकार भी करते हैं और अंदर खाने में जोड़तोड़ की गणित पर भी काम शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर शिकस्त के बाद भी भाजपा की ताजपोशी के लिए कोशिश के दावों ने सियासी रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। अब सबकी नजर निर्दलियों पर है, इतना तय है कि निर्दलियों की कृपा जिस पर बरसेगी, अध्यक्ष का सेहरा उसी के सिर सजेगा।

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