बभनी में महामहिम के स्वागत के लिए जुटेंगे 20 हजार आदिवासी

बभनी ब्लाक के चकचपकी स्थित सेवा समर्पण संस्थान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद का आगमन 14 मार्च को प्रस्तावित है। वे यहां वनवासी समागम को संबोधित करने के साथ ही छात्रावास व विद्यालय भवन का लोकार्पण करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस बार जनपद के 20 हजार आदिवासी उपस्थित रहेंगे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 09:59 PM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 09:59 PM (IST)
बभनी में महामहिम के स्वागत के लिए जुटेंगे 20 हजार आदिवासी
बभनी में महामहिम के स्वागत के लिए जुटेंगे 20 हजार आदिवासी

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : बभनी ब्लाक के चकचपकी स्थित सेवा समर्पण संस्थान में राष्ट्रपति रामनाथ कोविद का आगमन 14 मार्च को प्रस्तावित है। वे यहां वनवासी समागम को संबोधित करने के साथ ही छात्रावास व विद्यालय भवन का लोकार्पण करेंगे। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए इस बार जनपद के 20 हजार आदिवासी उपस्थित रहेंगे। उनके बैठने के लिए दो लाख वर्ग फीट में टेंट लगाए जा रहे हैं। आदिवासियों के लिए लगने वाली कुर्सियों को उचित दूरी पर रखा जाएगा। हालांकि पड़ोसी राज्यों के आदिवासियों को इस कार्यक्रम से दूर रखा जाएगा, इसके पीछे मूल करण कोरोना संक्रमण है।

पुलिस-प्रशासन से लेकर संस्थान के लोग भी पूरे मनोयोग से लगे हैं। राष्ट्रपति की आगवानी करीब 1000 आदिवासी कलाकारों द्वारा कराई जाएगी। कलाकार महामहिम के समक्ष अपनी लोक संस्कृति और कला का प्रदर्शन करेंगे। इसके लिए करमा, शैला, डोमकच नृत्य का अभ्यास भी शुरू कर दिया है।

करीब 80 गांवों के आदिवासी जुटेंगे

कारीडाड़ स्थित सेवा समर्पण संस्था परिसर में भी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। यहां हेलीपैड पिछले वर्ष के प्रस्तावित कार्यक्रम के दौरान ही बनाए गए थे, जिसका पुन: नवीनीकृत हो रहा है। राष्ट्रपति के साथ ही राज्यपाल के भी आने की संभावना है। कार्यक्रम में सोनभद्र के बभनी व म्योरपुर ब्लाक के करीब 80 गांवों के आदिवासी जुटेंगे।

आश्रम के सह संगठनमंत्री आनंद ने बताया कि राष्ट्रपति के कार्यक्रम को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी चल रही है। यहां आगमन के समय ही म्योरपुर व बभनी के आदिवासी कलाकार अपने कला का कौशल दिलाएंगे। उन्होंने बताया कि करमा नृत्य आदिवासी सबसे महत्वपूर्ण होता है। इस लिए इसे पहले प्रस्तुत कराया जाएगा। क्या होता है करमा नृत्य

सह संगठनमंत्री आनंद के मुताबिक वनवासी समाज का असली त्योहार करमा माना जाता है। हिदी कैलेंडर के अनुसार भादौ माह के एकादशी के दिन यह त्योहार मनता है। उसके बाद पूरे वर्ष आदिवासी इसे अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। बताया कि कर्म देवता की पूजा का इसमें खास महत्व है। जंगलों में एक करम का पेड़ मिलता है। वनवासी एकादशी से दो दिन पहले उस पेड़ के पास पहुंचते हैं और चावल, हल्दी, अगरबत्ती समर्पित कर निमंत्रण देते हैं। उसके बाद परिवार के लोग व्रत रखकर एकादशी की शाम को करम के पेड़ की टहनी तोड़कर अपने घर लाते हैं और उसकी विधिवत पूजा करते हैं। अगले दिन उसे जल में प्रवाहित कर देते हैं। पूजन के समय महिलाएं, पुरुष एक साथ नृत्य करते हैं। यही करमा नृत्य होता है।

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