सियासत न दे सकी सेहत को 'धड़कन'

यहां तो सेहत महकमा खुद बीमार डॉक्टर से लेकर नर्स तक नहीं। 151 साल पुराने भवन में चल रहा जिला अस्पताल हो चुका जर्जर।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 12 Apr 2019 11:30 PM (IST) Updated:Fri, 12 Apr 2019 11:30 PM (IST)
सियासत न दे सकी सेहत को 'धड़कन'
सियासत न दे सकी सेहत को 'धड़कन'

अनुपम सिंह, सीतापुर : लोकसभा का चुनाव अपने सबाब पर है। नेता वादों और दावों का पिटारा लिए घूम रहे हैं। आवाम की दुखती रग पर हाथ रखकर अपना बेड़ापार करने में जी जान से जुटे हैं, लेकिन चुनावी मौसम में स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा गायब है।

स्वास्थ्य सेवाओं का हाल, संसाधन से लेकर स्टाफ तक का अभाव

जिन पर आवाम का इलाज कर जिदगी देने की जिम्मेदारी है, वह सेहत महकमा खुद बीमार है। स्टाफ से लेकर संसाधनों तक की कमी है। न समय से एंबुलेंस मिल पाती है और न ही इलाज। स्वास्थ्य सेवा का ये हाल तब है, जब सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, फिर भी आवाम को इलाज की दरकार है। सूबे की राजधानी से सटे सीतापुर जिले की आबादी 50 लाख से अधिक है। प्राथमिक इलाज के लिए सीएचसी, पीएचसी, स्वास्थ्य केंद्र तक खोले गए हैं, लेकिन यहां पर इलाज मयस्सर नहीं। यहां पर न तो डॉक्टर रहते और न ही स्टाफ। कई सीएचसी और पीएचसी ऐसी है, जो खुलती ही नहीं। डॉक्टर जाते ही नहीं। इसकी वजह से पूरा भार जिला अस्प्ताल पर आ जाता है और जिला अस्पताल की व्यवस्थाओं की बात करें तो वह खुद भी बीमार है। 8 बजे से ओपीडी खुलने का वक्त है, लेकिन शायद ही कभी डॉक्टर टाइम से पहुंचते हो। देर से आना और जल्दी जाना साहब की आदत में है। गंभीर बीमारियों के डॉक्टर तक नहीं है, दवाओं का टोटा ऊपर से। एंटी रैबीज जैसे इंजेक्शन जिला अस्पताल में नहीं है तो सीएचसी और पीएसी की बात करना ही बेमानी है। रात गहराने पर अगर आप गंभीर मरीज लेकर जिला अस्पताल जा रहे हैं तो मुमकिन है कि इमरजेंसी कक्ष में आपको डॉक्टर मिल जाए और वक्त रहते इलाज शुरु हो। स्टाफ की कमी होने की वजह से वार्ड ब्वाय इंजेक्शन लगाने से लेकर पूरा इलाज करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिला अस्पताल के पूरे स्टाफ से लेकर यहां भर्ती मरीजों की जिदगी हर वक्त दांव पर लगी रहती है। वजह है कि आजादी के पहले 1868 की बनी बिल्डिग में लोगों की जो जिदंगियां बचाई जा रही है, वह कब खतरे में पड़ जाए कहा नहीं जा सकता। पूरी इमारत जर्जर हो चुकी है। कई बार हादसे भी हो चुके है। कई ऐसी जगहें है जिन्हें कंडम घोषित किया जा चुका है। हर वक्त कर्मचारी खौफ के साए में रहता है।

जिला महिला अस्प्ताल की हालात तो और भी बद बदतर है। एक्स-रे से लेकर अल्ट्रासाउंड, जांच से लेकर ऑपरेशन तक की पूरी व्यवस्थाएं है, लेकिन जिम्मेदारों की मनमानी से लोगों को दो-चार होना पड़ता है। सीएचसी से गंभीर हालत में रेफर होने वाले अधिकांश केसों में यहां का स्टाफ हाथ खड़ा कर लेता है और मरीज को आखिरी स्टेज पर गंभीर बता लखनऊ के क्यून मेरी, ट्रॉमा सेंटर, विवेकानंद अस्पताल को रेफर करने में देर नहीं लगाते। इसका मतलब है कि जिला महिला अस्पताल में काबिल डॉक्टरों से लेकर संसाधनों तक की कमी है, इसीलिए रेफर की कार्रवाई होती है। सीतापुर से लखनऊ की दूरी 90 किमी है। कई बार रेफर मरीज धरती के भगवान की गोद में पहुंचने से पहले ही जिदगी की जांग हार जाते हैं। ये समस्या कोई आज की नहीं है। सालों साल से सेहत महकमे की तस्वीर ऐसी ही चली आ रही है, लेकिन इसको लेकर न तो जनप्रतिनिधि गंभीर है और न ही सरकारें ध्यान देती है। वादे तो खूब होते है, लेकिन धरातल पर कुछ नहीं दिखता।

-19 सीएचसी है जिले में।

-69 पीएचसी है जिले में।

-405 स्वास्थ्य उपकेंद्र है।

-46 एंबुलेंस 102 की है।

-28 एंबुलेंस 108 की है।

-4 एंबलुेंस एलएस की है।

थोड़ा है, बहुत की जरुरत है

-जिला अस्पताल में डायलसिस की व्यवस्था नहीं।

-सालों से हार्ट का कोई डॉक्टर नहीं।

-फिजीशियन से लेकर कॉरडियोलॉजिस्ट के डॉक्टर नहीं।

-स्ट्रेचरों की भी कमी, जो है भी वह टूटे हुए हैं।

-मानक के अनुरूप बेड नहीं हैं। फर्श पर लिटाकर मरीजों का होता है इलाज।

-ऑक्सीजन की पाइप लाइन बिछी है, लेकिन काम नहीं शुरू हुआ।

-सृजति पद के अनुरूप 11 डॉक्टरों की कमी है जिला अस्पताल में।

-नर्सों की भी कमी है। ड्यूटी में दिक्कतें आती है।

-मरीजों के तीमारदारों के ठहरने के लिए स्थाई रैन बसेरा नहीं है।

-जल ही जीवन है, लेकिन स्वच्छ जल की भी दरकार है।

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