प्रतिभाओं से खेलती सियासत

20 रजिस्ट्रेशन है फुटबाल खेल में। 15 रजिस्ट्रेशन है ताइक्वांडो खेल के। एक भी महिला कोच नहीं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 23 Apr 2019 11:37 PM (IST) Updated:Tue, 23 Apr 2019 11:37 PM (IST)
प्रतिभाओं से खेलती सियासत
प्रतिभाओं से खेलती सियासत

अनुपम सिंह, सीतापुर : सही मौैके को भुनाने में माहिर माने जाने वाले राजनीतिक दल खिलाड़ियों पर भी अपनी सियासी रोटियां सेकने में पीछे नहीं हैं। खेलों को बढ़ावा देने के लिए किसी ने भी दिलचस्पी नहीं ली। यही वजह रही कि, प्रतिभाएं चमक नहीं सकी। आसमान छूने को बेताब प्रतिभाएं संसाधनों और 'द्रोणाचार्य' के अभाव में दम तोड़ती नजर आ रही हैं। सियासत की पिच पर राजधानी से सटे सीतापुर जिले की अपनी अलग पहचान है, लेकिन खेल की सुविधाओं को बढ़ाने के नाम पर लाखों का 'खेल' कर दिया गया, लेकिन फिर भी तस्वीर नहीं बदली। वादों का पिटारा लिए नेता शहर की गलियों से लेकर गांव की पगडंडियों तक की खाक छान रहे हैं, लेकिन जिले की प्रतिभाओं को निखारने और खेल को बढ़ावा देने के लिए चुनावी एजेंडे से ये मुद्दा गायब है। सिस्टम और सियासत के बीच फंसे खिलाड़ियों को मझधार से निकलने के लिए सहारे की जरूरत है। जिन पर प्रतिभाओं को तराशने की जिम्मेदारी है, वह इसे सिर्फ ड्यूटी समझकर निभा रहे हैं। यही वजह है कि जिले का इकलौता खेल मैदान मेजर ध्यानचंद स्टेडियम बदहाली का शिकार हो गया है। ग्राउंड के चारों ओर बड़ी-बड़ी घास उगी है। खिलाड़ियों से ज्यादा यहां पर मवेशियों का डेरा लगता है। गर्मी में मैदान पर पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों के लिए स्वच्छ पानी की भी दरकार है। एक इंडिया मार्का हैंडपंप लगा भी है, लेकिन इसका पानी पीने लायक नहीं है। ये समस्या तो महज एक बानगी है, जबकि स्टेडियम में समस्याओं का अंबार लगा है। इसी से चंद कदमों की दूरी पर बना तरणताल की तस्वीर भी जुदा नहीं है। यहां पर भी गंदगी से लेकर उगी हुई बड़ी-बड़ी घास हकीकत को बयां कर रही है। स्टेडियम से लेकर तरणताल तक में खेल की कई सुविधाओं को बखान करने से जिम्मेदार थकते नहीं है, लेकिन दो खेलों को छोड़कर किसी भी खेल के कोच तक नहीं हैं, जो हैं भी वह सही से अपनी जिम्मेदारियों को निभा नहीं रहे हैं। यही वजह है खिलाड़ियों की संख्या कम हो गई है। जिला क्रीड़ा अधिकारी के पद को छोड़ दिया जाए तो किसी की तैनाती नहीं है। जिम्मेदार ठेके से पदों पर भर्ती कर किसी तरह काम चलाने का दुखड़ा रोते रहते हैं। तरणताल स्टेडियम में अराजकता

तरणताल स्टेडियम में खिलाड़ियों को भले ही स्वीमिग, जिम, बैडमिटन जैसी सुविधाओं मयस्सर न हो रही हो, लेकिन ताश के पत्तों का खेल खुलेआम होता है। जिला क्रीड़ा अधिकारी नरेश चंद्र यादव अक्सर अपने दफ्तर से गायब ही रहते हैं। यही वजह है कि तरणताल स्टेडियम खिलाड़ियों का कम बल्कि जुआरियों का अड्डा बनता जा रहा है। ..तो ऐसे कैसे बढ़ेंगी बेटियां

बेटियों को बेटों के बराबर लाने, कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बड़ी-बड़ी बातें करने और इसकी वकालत करने वाले जिम्मेदारों से लेकर सियासी दल खेल की पिच पर बेटियों के साथ खड़े दिखाई नहीं दे रहे हैं। महिला खिलाड़ियों के लिए एक भी महिला कोच न होना इस बात की तस्दीक कर रही है। .. दम तोड़ गई 'पायका' योजना

खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई साल पहले सरकार ने पायका योजना गांव-गांव में लागू की थी। इसके लिए हर गांव में क्रीड़ा श्री रखे गए थे, जिन पर खिलाड़ी बनाने की जिम्मेदारी थी। योजना तो शुरू हो गई, लेकिन अंजाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ गई। क्रीड़ा श्री का मानदेय तक नहीं मिला। सभी को एक लाख के खेल के सामान हॉकी, जिम मशीन आदि मुहैया कराया गया था, लेकिन आज खेल के सामान कहां है, कोई बताने वाला नहीं। ये खेल सुविधाएं हैं नाम की

-बैडमिटन

-टेबिल टेनिस

-जिम,

-फुटबाल

-टाइक्वाडों

-एथलेटिक्स

-स्वीमिग

-हॉकी

रिक्त चल रहे ये पद

-उपक्रीड़ाधिकारी

-महिला कोच

-ग्राउंड मैन

-बाबू

-चौकीदार

-स्वीपर

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