सहजन की मिल रही छांव, 'तंदुरुस्त' बन रहा गांव
पांच साल पहले हुआ था रोपण गांव में नहीं हुआ किसी को कोरोना
सीतापुर: सिधौली ब्लाक का महारानीखेड़ा अब सहजन वाला गांव पुकारा जाने लगा है। इस गांव की जितनी आबादी है, उससे कहीं ज्यादा सहजन के पेड़ यहां लगे हैं। गांव में आने वालों को हर ओर सहजन के पेड़ जरूर नजर आ जाएंगे। इसे सहजन का जादू कहें या फिर अनोखा संयोग कि कोरोना की दोनों लहरों के दौरान इस गांव में कोई भी संक्रमित नहीं हुआ। यह सारा कमाल गांव में बने यूथ नेटवर्क का है, जिसकी बदौलत ग्रामीणों ने सहजन की उपयोगिता को समझा है।
सीतापुर-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग से थोड़ा अंदर ही महारानीखेड़ा गांव है। इस गांव की खासियत सहजन के पेड़ हैं। खेतों और रास्तों के अलावा घरों के बाहर भी सहजन के पेड़ नजर आते हैं। इस गांव के लोगों को सहजन करीब पांच वर्ष पहले भा गया था। दरअसल, गांव के राजाराम पेस संस्था से जुड़े हैं। उन्हें एक प्रशिक्षण के दौरान सहजन की उपयोगिता के बारे में बताया गया। इसी के बाद उन्होंने अपने गांव के युवाओं को इसकी उपयोगिता बताई। राजाराम बताते हैं कि गांव में सहजन के पौधों के रोपण का सिलसिला चार साल पहले शुरू हुआ था।
राजाराम बताते हैं कि अपनी युवा टोली के साथ ग्रामीणों को इसके लाभ बताए। बकौल, राजाराम ग्रामीणों ने सहजन के फल, पत्तियों और छाल को अपने खानपान में शामिल किया तो उन्हें काफी लाभ हुआ। यह कुपोषण से मुक्ति दिलाने में भी कारगर है।
आसानी से लग जाता है सहजन
यूथ नेटवर्क के लीडर राजाराम बताते हैं कि सहजन का पौधा लगाना बहुत आसान है। एक बड़ी टहनी लेकर एक से दो फिट तक जमीन में लगाकर ऊपर से गोबर लगाया जाता है। अगले ही सीजन में ही पेड़ पर फल लगने लगता है। सहजन है चमत्कारी औषधि:
जिला आयुर्वेद अधिकारी डा. एसके सचान ने बताया कि सहजन औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसकी पत्तियां, बीज और छाल का उपयोग विभिन्न बीमारियों के लिए किया जाता है। यह कुपोषण से मुक्ति दिलाता है। रक्त शोधक है। इसके अलावा हीमोग्लोबिन की कमी को भी दूर करता है। जोड़ों के दर्द में भी इसका सेवन काफी लाभदायक है।