साधु संन्यासी करेंगे चातुर्मास, आश्रमों में बहेगी भक्तिरस धार

आषाढ़ शुक्ल हरिशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल देवोत्थानी एकादशी तक चलेगा क्रम

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Jul 2021 11:56 PM (IST) Updated:Tue, 20 Jul 2021 11:56 PM (IST)
साधु संन्यासी करेंगे चातुर्मास, आश्रमों में बहेगी भक्तिरस धार
साधु संन्यासी करेंगे चातुर्मास, आश्रमों में बहेगी भक्तिरस धार

सीतापुर: सनातन परंपरा में चातुर्मास का विशेष महत्व है। मंगलवार को हरिशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है, यह 14 नवंबर रविवार तक चलेगा। चातुर्मास की मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु व अन्य देवतागण निद्रा में चले जाते हैं। सृष्टि का संचालन भगवान शिवजी करते हैं। चातुर्मास का अर्थ चार महीने (श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक से होता है। चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल पक्ष की हरिशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की देवोत्थानी एकादशी तिथि तक होती है। इस दौरान मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। इस दौरान भागवत कथा का पाठ करना चाहिए क्योंकि साधना के लिए यह समय श्रेष्ठ माना जाता है। साथ ही यह समय दान, पुण्य के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।

धर्मगुरु व संत करते हैं चातुर्मास

जहां भगवान विष्णु सहित देवतागण विश्राम करते हैं। वहीं साधु संन्यासीगण इन चार माह भर कहीं न जाकर चातुर्मास करते हैं। नैमिषारण्य के आश्रमों में इस समय यही रौनक है। आश्रमों में साधु संन्यासी पहुंचेंगे और अपना चातुर्मास करेंगे। इस दौरान आश्रमों में भक्ति का अद्भुत ²श्य नजर आएगा। यहां भागवत कथा, भजन और वेदमंत्र गूंजेंगे।

करेंगे गुरुपूजन

आश्रमों में गुरुपूर्णिमा के पावन पर्व पर गुरुभक्ति का भी नजारा देखने को मिलेगा। इस दौरान दूर दराज स्थानों से आए शिष्यगण अपने गुरुजनों की पूजा अर्चना करेंगे।

गुरुजनों ने बताया

पुराणों की मान्यतानुसार भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा का अवलंबन लेकर शयन कर जाते हैं। समाधि की अवस्था में विश्व कल्याण के लिए संकल्प करते हैं। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। इसको हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। चार माह तक अनुष्ठान जप व्रत मंत्रों का अभ्यास करने का विशेष फल है। शांतचित्त होकर ईश्वर की साधना करना चाहिए इस दौरान विशेष अनुष्ठान समय समय पर होते रहते हैं।

जगदाचार्य स्वामी देवेंद्रानंद सरस्वती, नारदानंद आश्रम

चातुर्मास अनुष्ठान साधना के लिए विशेष योगदायी है। इसके नियम के लिए योगी लोग देवशयनी एकादशी से अनुष्ठान प्रारंभ कर देते हैं। जो भी इसमें साधना करते हैं गणेश चतुर्थी, कृष्ण जन्माष्टमी, सावन, नवरात्र आदि चातुर्मास के अंतर्गत ही आते हैं। यह समय श्रीमद्भागवत के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है।

स्वामी विखनसाचार्युलु महाराज, बालाजी मंदिर

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