कानूनगो दफ्तर है या कूड़ाघर, भीगकर सड़ गईं फाइलें

सदर तहसील स्थित कानूनगो दफ्तर में खिड़कियां बनी थूकदान मकड़ी का जाला उखड़ी वायरिग बाइकों का स्टैंड।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 12:05 AM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 12:05 AM (IST)
कानूनगो दफ्तर है या कूड़ाघर, भीगकर सड़ गईं फाइलें
कानूनगो दफ्तर है या कूड़ाघर, भीगकर सड़ गईं फाइलें

सीतापुर : सदर तहसील में साफ-सफाई की बात बेमानी होगी। गंदगी से कानूनगो के दफ्तर कूड़ा घर की तरह हो गए हैं। खिड़कियां थूकदान बनी हैं। मकड़ी का जाला पुराना होकर काला हो गया है। जाला लटक रहा है। वायरिग उखड़ चुकी है। फाइलें भीगकर सड़ चुकी हैं। दस्तावेज आपस में चिपक गए हैं, छुड़ाने पर फट जा रहे हैं। सामने वकीलों व टाइप राइटरों की लोहे व लकड़ी की दुकानों ने कानूनगो दफ्तर को सामने से घेर लिया है।

कई वर्ष बीत गए इस कार्यालय की मरम्मत हुई न ही रंगाई-पोताई। राजस्व कर्मी गंदगी वाले कमरों में कैसे बैठ लेते हैं और काम करते हैं। यह तो वही बता सकते हैं। कानूनगो राम मोहन दीक्षित ने कहा, कानूनगो दफ्तर में पहले नायब तहसीलदार बैठा करते थे। इसी में उनकी कोर्ट थीं। इस भवन की अंतिम बार सफाई, रंगाई-पोताई कब हुई, उन्हें भी याद नहीं है।

तहसीलदार सदर ज्ञानेंद्र द्विवेदी ने बताया कि कानूनगो दफ्तर को तहसील भवन के भूतल पर शिफ्ट कर रहे हैं। यहां केविन बन गए हैं। किसान सम्मान निधि के फार्म फीड कराने को कहा है। अतिक्रमण भी हटवाते हैं।

कानूनगो भी क्या करें, तहसील की व्यवस्था है :

शनिवार दोपहर कानूनगो दफ्तर में कोई राजस्व कर्मी नहीं था। निजी सहयोगी बैठे कार्य निपटा रहे थे। निजी कर्मी राकेश कुमार ग्रामीण आबादी सर्वेक्षण रजिस्टर के विवरण को प्राप्त सूचियों से मिलान कर रहे थे। कानूनगो एलिया क्षेत्र के दफ्तर में भी कई निजी कर्मी बैठे थे। गंदगी व मकड़ी जाला की बात कहने पर इन लोगों ने कहा, सब सामने है आप देख लीजिए हम लोगों घर चलाने की मजबूरी में दुर्गंध के बीच बैठकर काम करते हैं। कानूनगो भी क्या करें, तहसील की व्यवस्था है। अब तो कानूनगो एलिया क्षेत्र दफ्तर के पड़ोस में भी स्टांप विक्रेता ने लोहे की दुकान रख ली है।

छूना मत जरूरी कागज हैं..

कानूनगो एलिया क्षेत्र दफ्तर के दक्षिण में अंतिम से दूसरे रूम में किसान सम्मान निधि के आवेदनों का ढेर जमीन पर पड़ा था। आवेदन भीगकर आपस में चिपके हैं। छुटाने पर फट रहे हैं। यहां बैठे निजी कर्मी राकेश आवेदनों को देखने से मना करने लगे। कहा, छूना मत जरूरी कागज हैं।

इनकी सुनिए..

नाजिर मनीष वाजपेयी का कहना है तहसील परिसर में कितनी दुकानें रखी हैं। यह उन्हें नहीं पता है। उनके पास ऐसा कोई रिकार्ड या सर्वे नहीं है।

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