महिला अस्पताल में भी 'ओपीडी पैसेंजर' लेट

सीतापुर : केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा गर्भवतियों का बेहतर सेवाएं दिए जाने के नाम पर हर स

By JagranEdited By: Publish:Fri, 16 Mar 2018 11:54 PM (IST) Updated:Fri, 16 Mar 2018 11:54 PM (IST)
महिला अस्पताल में भी 'ओपीडी पैसेंजर' लेट
महिला अस्पताल में भी 'ओपीडी पैसेंजर' लेट

सीतापुर : केंद्र व प्रदेश सरकारों द्वारा गर्भवतियों का बेहतर सेवाएं दिए जाने के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके बाद भी सरकारी अस्पतालों में गर्भवतियों को पर्याप्त सुविधाएं मयस्सर नहीं हो पा रही हैं। मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल है। पहले से स्टाफ की कमी बनी हुई है। इसके बाद भी डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा की जाने वाली लेटलतीफी से स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित होती हैं। कुछ ऐसा ही नजारा शुक्रवार की सुबह मुख्यालय स्थित जिला महिला अस्पताल में भी देखने को मिला। यहां निर्धारित समय के अनुसार ओपीडी सेवाएं शुरू नहीं हो पा रही हैं। मरीजों को सुबह जल्दी आने के बाद भी करीब 45 मिनट तक डॉक्टरों के इंतजार में लाइन लगाकर खड़ा होना पड़ता है। समय बीतने के साथ ही यहां अव्यवस्थाएं बढ़ जाती हैं, जिसका खामियाजा गर्भवतियों को भुगतना पड़ता है। समय से ओपीडी न शुरू होने के कारण महिला अस्पताल की अल्ट्रासाउंड व पैथालॉजी सेवाएं भी प्रभावित हो रही हैं। दैनिक जागरण टीम द्वारा की गई पड़ताल की एक रिपोर्ट -

केस-1

सुबह के सवा आठ बज चुके थे, महिला अस्पताल की ओपीडी का मुख्य कक्ष मरीजों से खचाखच भरा हुआ था। सुबह आठ बजे से पहले ही महिलाएं यहां पहुंच चुकी थीं। सहयोगी स्टाफ कर्मिमयों द्वारा परिसर की सफाई इत्यादि व्यवस्थाएं दुरुस्त की जा रही थीं, लेकिन डॉक्टरों का कोई पता नहीं था।

केस-2

सुबह के 08.20 बजे थे, महिला ओपीडी के ठीक बगल में बने बाल रोग विशेषज्ञ कक्ष में कोई डॉक्टर नहीं था। महिलाएं अपने बच्चों को लेकर इलाज कराने के लिए यहां बैठी हुईं थीं। पौने नौ बजे तक यहां मरीजों को देखने के लिए कोई डॉक्टर नहीं पहुंच सका था।

अल्ट्रासाउंड कक्ष पर लटकता मिला ताला

महिला अस्पताल की नई बि¨ल्डग में मरीजों की जांच के लिए अलग-अलग कक्ष बनाए गए हैं। सुबह साढ़े आठ बजे तक यहां अल्ट्रासाउंड कक्ष में ताला लगा हुआ था। पैरामेडिकल स्टाफ जांच प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी में था, लेकिन ओपीडी न शुरू हो पाने के कारण अभी तक पुरानी जांचें ही निपटाई जा रही थीं। हालांकि जांच रिपोर्ट लेने क लिए मरीजों की लंबी कतारें लग चुकी थीं। लेकिन यहां काउंटर पर बैठे कर्मचारियों द्वारा 08.35 बजे तक रिपोर्ट देना नहीं शुरू किया गया था। धीरे-धीरे लाइन लंबी होकर गेट तक पहुंच चुकी थीं। इसके अलावा इंजेक्शन कक्ष भी खाली पड़ा हुआ था।

डाइट के नाम पर दिया जा रहा धोखा

गर्भवतियों को प्रसव के बाद महिला अस्पताल में प्रोटीन डाइट देने का भी प्रावधान है। सुबह दैनिक जागरण ट म की पड़ताल के समय गर्भवतियों को नाश्ता वितरित किया जा रहा था। यहां प्रसूताओं को दो केले और करीब 200 एमएल दूध वितरित हो रहा था। दूध के नाम पर प्रसूताओं को सफेद पानी ही वितरित हो रहा था। दूध की गुणवत्ता के संबंध में वहां मौजूद लोगों से सवाल किए गए तो वह लोग शांत ही रहे।

रैन बसेरा भी बदहाल

महिला अस्पताल में औसतन प्रतिदिन 30 से 40 महिलाओं को प्रसव होता है। इतनी बड़ी संख्या में प्रसव होने के चलते यहां तीमारदारों की भी काफी भीड़ बनी रहती हैं। इन तीमारदारों के ठहरने के लिए इमरजेंसी के ठीक सामने रैन बसेरा बना हुआ है, लेकिन यह रैन बसेरा भी अव्यवस्थाओं का शिकार है। एक कक्ष में दो तख्त पड़े हुए थे, जबकि दूसरे कक्ष में बेड अत्यंत अव्यवस्थित थें और वहां से दुर्गंध भी आ रही थी।

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शुक्रवार को अचानक कई डॉक्टरों के अवकाश पर चले जाने के कारण ओपीडी देर से शुरू हो पाई थी। डाइट की गुणवत्ता में कमी है तो उसकी जांच कराकर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई होगी। पैथालॉजी में व्यवस्था दुरुस्त हो, इसके लिए प्रयास किए जाएंगे।

-डॉ. सुषमा कर्णवाल, सीएमएस

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