400 किमी स्कूटी चलाकर कर्मपथ पर आ गई 'हिम्मत वाली'
तारीफ लायक है ऊषा का भाव कहा-जरूरतमंदों के प्रति समर्पण का भाव हो तो सबकुछ संभव
सीतापुर : ऊषा भारती, जी हां यह कोई साधारण बेटी नहीं है बल्कि, जरूरतमंदों के प्रति समर्पण का भाव और घर की जिम्मेदार है। वैसे ऊषा गोरखपुर की है, पर उसने जिले में कोरोनाकाल में जरूरतमंदों की सेवा और कर्मपथ पर डटे रहने में खूब नाम कमाया है। ट्रैफिक दारोगा दिनेश चंद्र पटेल ऊषा की तारीफ करते नहीं थकते। कहते हैं, वर्ष 2018 बैच की कांस्टेबल ऊषा भारती वास्तव बेहद हिम्मती है। वह सीतापुर में तैनात है। 23 मार्च की रात 12 बजे से लॉकडाउन हुआ और दूसरे दिन रात 11 बजे उषा स्कूटी से गोरखपुर से सीतापुर आ गई थी। वह छुट्टी पर गई थी। उन्होंने वाहन न चलने या छुट्टी पर होने जैसा कोई बहाना भी नहीं बनाया। दिनेश चंद्र पटेल कहते हैं धन्य है ऊषा, और उसका उत्साह। ऊषा कहती हैं कि उनके लिए जनसेवा का यही स्वर्णिम मौका था। ऊषा के मुताबिक, लोगों को कोरोना संक्रमण से बचाने में अहम भूमिका निभाई। वह इतना उत्साहित थी कि, उसे रास्ते में 400 किमी का सफर मालूम ही नहीं पड़ा। ऊषा का भाव भी काबिले तारीफ है। कहती हैं कि उसे मालूम था कि यदि उनके माध्यम से एक भी व्यक्ति संक्रमित होने से बच गया, उसकी सेवा सफल होगी।
महामारी का देखा भय, पूरी की आशा
ऊषा ने बताया, लॉकडाउन के समय तेज धूप हुआ करती थी। घर से लौटते ही उसकी ड्यूटी लालबाग पर लग गई फिर जीआइसी चौराहा, कोट तिराहा पर ड्यूटी की। बताती है कि ड्यूटी के बीच में उसने लोगों की बेबसी को बखूबी देखा-समझा। लोगों के चेहरे पर महामारी का भय था। झोपड़-पट्टी के परिवारों के पास खाना तक नहीं बचा था। उषा को जो भी खाने-पीने को मिलता, वह बांट देती।
पारिवारिक पृष्ठ भूमि
ऊषा गोरखपुर के जंगल अगही सेनुरी थाना प्रीतीगंज की रहने वाली हैं। इनके परिवार में ऊषा के अलावा और कोई भी पुलिस में नहीं है। पिता श्रवण कुमार के हिस्से में सिर्फ पांच बीघे खेती है। इसी से गुजर-बसर होती है। चार भाई-बहनों में ऊषा बड़ी हैं, इसलिए वह घर की जिम्मेदारी भी बखूबी समझती हैं। भाई-बहनों के भविष्य को लेकर चितित रहती हैं।