लहरों के बीच बसा कुदरत का 'गोकुल'

सीतापुर: ऐसा स्थान, जहां गोवंश ही गोवंश नजर आ रहे हैं, उनके भोजन के लिए हराभरा बड़ा मैदान है। यहां न

By JagranEdited By: Publish:Tue, 20 Nov 2018 11:08 PM (IST) Updated:Tue, 20 Nov 2018 11:08 PM (IST)
लहरों के बीच बसा कुदरत का 'गोकुल'
लहरों के बीच बसा कुदरत का 'गोकुल'

सीतापुर: ऐसा स्थान, जहां गोवंश ही गोवंश नजर आ रहे हैं, उनके भोजन के लिए हराभरा बड़ा मैदान है। यहां न सड़क है, न किसी की फसल का नुकसान है। यह 'गोकुल' किसी ने सहेजा नहीं है, बल्कि छुट्टा पशुओं को प्रकृति ने यह जगह मानो दे दी हो। यहां गोवंश के सैकड़ों झुंड विचरण कर रहे हैं ।

सड़क पर यह पशु हादसों का सबब बन रहे हैं, किसान इन्हें अपनी फसलों का दुश्मन कहते हैं। कोई भी इन पशुओं की समस्या का हल नहीं निकाल रहा है। ऐसे में सीतापुर बहराइच सीमा पर बहने वाली घाघरा नदी के बीच खुद कुदरत ने एक छोटा सा बरसाना बसाया है। जो बेसहारा पशुओं के लिए वरदान बन गया है। जमीन नदी के बीच टापू पर है, वाहन यहां हैं ही नहीं। ऐसे में न जाने कहां से सैकड़ों की संख्या में गोवंश का झुंड टापू पर पहुंच गया। एक अनुमान के मुताबिक करीब छह सौ से अधिक की संख्या में यहां पशु मौजूद हैं। करीब तीन किलोमीटर लंबे व ढाई किलोमीटर चौड़े इस टापू पर कुछ ही हिस्से में खेती होती है। बाकी के हिस्सा पर हरी भरी घास है। यही वजह है कि पशुओं को टापू खूब भा रहा है। ताजी घास खाते हैं और घाघरा नदी से प्यास बुझाते हैं। यहां बसे गुरुप्यारे, बाबूराम, शीतला प्रसाद, चेतराम, जीतू, भगौती, मुनेजर आदि ग्रामीणों का कहना है कि जो गोवंश टापू पर हैं, उन पर किसी की दावेदारी नहीं है। टापू पर आए पशु तो फसलों के नुकसान का खतरा कम हो गया है। अन्य टापू बन सकते हैं संजीवनी

नदी के बीच कई अन्य टापू भी हैं। वहां किसी की दावेदारी नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन गौशालाओं के बजाय इन टापुओं पर बेसहारा पशुओं को बसा सकता है। देखरेख के लिए एक व्यक्ति को तैनात किया जा सकता है। इससे खर्च भी कम आएगा।

chat bot
आपका साथी