कर्तव्य के साथ सबके सेहत की चिता

कभी-कभी जीवन ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है जहां बहुत सारे लोग हार मान कर बैठ जाते हैं। कई ऐसे भी होते है जो हार मानने के बजाय समस्याओं से लड़ते हुए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं। इसमें एक नाम शाइस्ता खान का भी जो अपनी जिम्मेदारियों के साथ अपने कर्तव्य पथ भी आगे बढ़ रही हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 10:13 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 10:13 PM (IST)
कर्तव्य के साथ सबके सेहत की चिता
कर्तव्य के साथ सबके सेहत की चिता

सिद्धार्थनगर : कभी-कभी जीवन ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है जहां बहुत सारे लोग हार मान कर बैठ जाते हैं। कई ऐसे भी होते है जो हार मानने के बजाय समस्याओं से लड़ते हुए कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हैं। इसमें एक नाम शाइस्ता खान का भी जो अपनी जिम्मेदारियों के साथ अपने कर्तव्य पथ भी आगे बढ़ रही हैं।

कोरोना संक्रमण के बीच सभी से घर में रहने की अपील की जा रही है। लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिन्हें जिम्मेदारी के साथ- साथ सबकी फिक्र भी है। डुमरियागंज महिला रिपोर्टिंग चौकी की प्रभारी शाइस्ता खान एक ऐसी ही महिला हैं, जो संक्रमण काल में भी मातृ भाव की परिकल्पना साकार कर रही हैं। मूलत: प्रतापगढ़ जिले की रहने वाली एसआइ छह महीने से यहां जिम्मेदारी निभा रही हैं। इस बीच उन्हें परिवार के पास जाने का मौका नहीं मिला, लेकिन वह हौंसले के साथ अपने कर्तव्य पालन में जुटी हैं। मिशन शक्ति कार्यक्रम के तहत उन्होंने दर्जनों स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए।

आमीरों के जो गीत गाते रहे, वही नाम-ओ-दाद पाते रहे। हबीब जालिब का यह शेर शाइस्ता पर सटीक बैठता है। मातृत्व अवकाश के बाद प्रतापगढ़ जिले से आकर जब उन्होंने कार्यभार ग्रहण किया उस समय उनके जुड़वां बच्चे अरहान और आहिल छह माह के थे। उन्होंने पुलिस के दायित्व को निभाने के साथ- साथ मां होने का फर्ज भी बखूबी निभाया। कोरोना संक्रमण अप्रैल से तेज हुआ तो इनकी जिम्मेदारी बढ़ गई। रिपोर्टिंग चौकी पर महिलाओं से संबंधित मामलों के निस्तारण के साथ- साथ वह बचाव को लेकर जागरूक करने में भी मुखर हुई। उनकी अगुवाई में मिशन शक्ति कार्यक्रम के तहत भी विभिन्न स्कूलों में महिला अधिकार और महामारी के दौरान बरते जाने वाले एहतियात के बारे जानकारी दी गई। दफ्तर हो या उनका घर हर जगह कोविड नियमों का पालन कड़ाई से होता है। पति मो. जावेद खान इटवा में सचिव पद पर तैनात हैं। वह भी पत्नी का भरपूर साथ देते हैं। शाइस्ता कहती हैं कि अप्रैल में उनकी इच्छा कुछ दिन गांव जाने की थी, लेकिन बढ़ते संक्रमण के बीच उन्हें अपना कर्तव्य अधिक जरूरी लगा। महामारी की विकट स्थिति में भी वह मामलों के निस्तारण और महिलाओं को बीमारी से बचाव के उपाय बताने में लगी हुई हैं।

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