बुद्ध की धरती से निकली संगीत प्रसार की स्वर लहरियां

बुद्ध की क्रीड़ास्थली सिद्धार्थनगर ने शास्त्रीय संगीत के प्रसार की स्वर लहरियां भी बिखेरी हैं। शोहरतगढ़ की माटी ने वह विशारद दिया जिसे संगीत व दर्शन में योगदान के लिए पदमभूषण से सम्मानित किया गया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 10:46 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 10:46 PM (IST)
बुद्ध की धरती से निकली संगीत प्रसार की स्वर लहरियां
बुद्ध की धरती से निकली संगीत प्रसार की स्वर लहरियां

कृष्ण पाल सिंह, (शोहरतगढ़) सिद्धार्थनगर: बुद्ध की क्रीड़ास्थली सिद्धार्थनगर ने शास्त्रीय संगीत के प्रसार की स्वर लहरियां भी बिखेरी हैं। शोहरतगढ़ की माटी ने वह विशारद दिया, जिसे संगीत व दर्शन में योगदान के लिए पदमभूषण से सम्मानित किया गया। बात हो रही है, आल इंडिया रेडियो में 1956 से 1962 तक मुख्य निर्माता संगीत (चीफ प्रोड्यूसर म्यूजिक) रहे पद्मभूषण ठाकुर जयदेव सिंह की, जिन्होंने अपने कृतित्व से शास्त्रीय संगीत के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पद्मभूषण पं.छन्नूलाल मिश्र, पद्मभूषण डा. शन्नो खुराना, डा. एमआर गौतम व डा. मंजू सुंदरम के गुरु रहे जयदेव ठाकुर ने आल इंडिया रेडियो को नए कार्यक्रम दिए ही, शास्त्रीय संगीत से जुड़े बड़े कार्यक्रमों की भी शुरुआत कराई। 1973 में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्हें 1974 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

ठाकुर जयदेव सिंह का जन्म 19 सितंबर 1893 में शोहरतगढ़ के निबी दोहनी गांव में हुआ। उनके पिता गोपाल सिंह मूल रूप से भपसी के रहने वाले थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा शोहरतगढ़ में हुई। 1906 में वाराणसी के सेंट्रल हिदू स्कूल में छठी में दाखिला लिया और इंटरमीडिएट प्रथम श्रेणी से पास हुए। 1932 में गले में रोग के कारण गायन छोड़कर संगीत के विकास और लेखन पर ध्यान केंद्रित किया। 1945 में कानपुर के डीएवी कालेज में दर्शनशास्त्र और अंग्रेजी के व्याख्याता रहे। फिर लखीमपुर खीरी के युवराज दत्ता कालेज के प्रधानाचार्य बनाए गए। जन्मभूमि के प्रति लगाव के कारण विद्यालय विहीन क्षेत्र में शोहरतगढ़ के राजा शिवपति सिंह से मिलकर 1948 में शिवपति इंटर कालेज की स्थापना कराई। आजीवन इस समिति के सदस्य रहे। यहां संगीत की शिक्षा देने के लिए संगीत भवन बनवाया, जो आज भी उनके नाम पर है। ठाकुर जयदेव की बहन के पौत्र एवं हिदी के पूर्व प्रवक्ता विनय सिंह बताते हैं कि बाबा हिदी, संस्कृत, पालि, बांग्ला, मराठी, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, अरबी, फारसी समेत कई भाषाएं बोल व लिख लेते थे। उनका निधन 27 मई 1986 को वाराणसी में हुआ।

ठाकुर जयदेव की रचनाएं

कश्मीरी शैववाद के समर्थक ठाकुर जयदेव ने तीन खंडों में कबीर वांगमय का संपादन किया। प्रत्यभिज्ञानहृदय, बुद्धिस्ट कांसेप्ट आफ निर्वाण, ए ब्रीफ हिस्ट्री आफ इंडियन म्यूजिक, विज्ञानभैरव, समकालीन दर्शन, पाश्चात्य दर्शन की मुख्य अवधारणाएं, पाश्चात्य दर्शन का इतिहास आदि पुस्तकें लिखीं। शिव सूत्र का अंग्रेजी अनुवाद किया।

आकाशवाणी में कई पहल

मुख्य निर्माता रहते हुए वंदेमातरम, मंगल शहनाई वादन, अखिल भारतीय संगीत सम्मलेन, रेडियो संगीत सम्मेलन की शुरुआत और टेप संग्रहालय की स्थापना कराई। कानपुर में संगीत समाज और लखनऊ में कत्थक केंद्र की स्थापना कराई। तानसेन समारोह शुरू कराया। वाराणसी में ध्रुपद मेला समिति व काशी सुप्रभातम समिति के सदस्य रहे।

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