कवि-शायरों को हिदू और मुसलमान में बांट रही हुकूमत

नदीम फर्रूख ने कहा कि आज ऐसे हालात हैं कि कोई किसी पर विश्वास नहीं कर रहा है। हर वर्ग कुचला जा रहा है। अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता का जो अधिकार मिला हुआ है उसका दुरुपयोग हो रहा है। एक ओर हमारे बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा है कि देश को असंख्य बलिदानों के बाद वर्ष 1947 में आजादी मिली वहीं एक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सिने तारिका कहती है कि आजादी वर्ष 2014 में मिली।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Nov 2021 10:19 PM (IST) Updated:Sun, 28 Nov 2021 10:19 PM (IST)
कवि-शायरों को हिदू और मुसलमान में बांट रही हुकूमत
कवि-शायरों को हिदू और मुसलमान में बांट रही हुकूमत

सिद्धार्थनगर : कवि व शायर देश दुनिया के हालात और परिस्थितियों पर पैनी नजर रखते हैं। उनकी यह कोशिश भी रहती है कि अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता तक पैगाम पहुंचाएं और उन्हें हर मुद्दे पर जागरूक करें। शनिवार की शाम डुमरियागंज की सरजमीं पर दूर-दूर के नामी गिरामी शायर मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहुंचे थ। जागरण ने चार मशहूर शायरों से बातचीत करते हुए मौजूदा परिस्थितियों पर उनकी राय साझा की।

मशहूर शायरा शाइस्ता शना ने कहा कि मौजूदा समय में जातिगत भावना इतनी प्रबल हो गई है कि कवि हिदू कहे जा रहे हैं और शायर मुसलमान। पहले ऐसे हालात नहीं थे कि रचनाकारों को जाति धर्म की बंदिशों का सामना करना पड़ा हो। मौजूदा परिवेश में सर्वाधिक शोषण किसानों का हो रहा है। वह अपने हक की लड़ाई लड़ते हैं तो उन्हें हुक्मरान गाड़ियों तले कुचलकर दुर्घटना का रूप दे देते हैं। अगर परिस्थिति ऐसी ही रही तो देश में भूख की मार बढ़ेगी क्योंकि जहां अन्नदाता का सम्मान नहीं वहां माता अन्नपूर्णा का वास नहीं हो सकता।

विकास बौखल ने कहा कि मौजूदा सरकार सिर्फ और सिर्फ नफरत की राजनीति कर रही है। इस देश की लड़ाई में जितना हिदुओं का योगदान रहा उससे कम योगदान मुसलमानों का नहीं रहा। बावजूद पिछले कुछ वर्षों में मुसलमान हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। उनकी पीड़ा, उनकी आवाज इस सरकार में नहीं सुनी जा रही है। मौजूदा प्रदेश सरकार ने अब तक कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसे गिनाया जा सके। सिर्फ अभिलेखों में कार्य हुए हैं धरातल पर तो अभी भी गर्द ही जमी दिखती है।

जौहर कानपुरी ने कहा कि लोगों को जागरूक करने व सलीका सिखाने का कार्य कवि सम्मेलन और मुशायरों के जरिए बहुत पहले से होता रहा है। यह ऐसे माध्यम हैं जो हमेशा लोकप्रिय रहे हैं। लेकिन आज कवि सम्मेलन तो हो रहे हैं, लेकिन मुशायरों में खासी कमी आई है। मुलायम सिंह यादव की सरकार में जितना सम्मान कवियों को मिलता था उतना ही सम्मान शायरों का था, लेकिन अब तो शायरों को कमतर समझा जा रहा है।

नदीम फर्रूख ने कहा कि आज ऐसे हालात हैं कि कोई किसी पर विश्वास नहीं कर रहा है। हर वर्ग कुचला जा रहा है। अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता का जो अधिकार मिला हुआ है उसका दुरुपयोग हो रहा है। एक ओर हमारे बच्चों को यह पढ़ाया जा रहा है कि देश को असंख्य बलिदानों के बाद वर्ष 1947 में आजादी मिली वहीं एक राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित सिने तारिका कहती है कि आजादी वर्ष 2014 में मिली। अब इसे क्या माना जाए और क्या समझा जाए।

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