स्वावलंबन के स्वप्न का सुफल..महिलाओं की मेहनत 'सफल'
पीपीई किट बनाने के साथ स्वावलंबन का स्वप्न आकार लेने लगा।
सिद्धार्थनगर: कुछ कर गुजरने की चाह थी, इसलिए घर की रसोई में सिमटी जनियाजोत की महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाया। इसी बीच महामारी ने दस्तक दी तो इसे चुनौती मानकर आपदा को अवसर में बदलने की ठानी। पीपीई किट बनाने के साथ स्वावलंबन का स्वप्न आकार लेने लगा। महिलाओं की मेहनत का सुफल आज 'सफल' के रूप में न सिर्फ महिला सशक्तीकरण की कहानी लिख रहा है, बल्कि इससे आधी आबादी को सेहत का उपहार भी मिला है।
जनियाजोत स्वयं सहायता समूह की समन्वयक दुर्गा कहती हैं कि पीपीई किट से हुई कमाई के बाद समूह की महिलाओं का हौसला बढ़ा तो कुछ नया करने की सोची। प्रशासन की मदद से पत्तल बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए समूह की महिलाएं सुलतानपुर गई। वहां सेनेटरी नैपकिन बनते देखा तो उसके निर्माण की प्रक्रिया समझने में रुचि दिखाई। इसे देखकर वहां हमें सेनेटरी नैपकिन बनाने का प्रशिक्षण मिला। पीपीई किट से हुई आय के साथ बीडीओ सुशील कुमार पांडेय और प्रशासन से मिली मदद के जरिए जुटाई गई पांच लाख की लागत से सेनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट शुरू की गई। दो अक्टूबर से उत्पादन शुरू हुआ। इसे नाम दिया गया 'सफल'। अभी तक 60 हजार पैड बनाकर 40 हजार की बिक्री की जा चुकी है। चार पैड के पैकेट की लागत 12 रुपये है। इसे 19 रुपये में बेचते हैं। बड़ी कंपनियों के पैड 38 से 68 रुपये तक में मिलते हैं। इसे देखते हुए स्वयंसेवी संस्था हेल्पिंग हैंड ने एक लाख पैड बनाने का ऑर्डर दिया है। दुर्गा कहती हैं, समूह की सपना, रीता, लक्ष्मी चौहान, रुक्मणि, ज्ञानमती, पिंकी, सुमित्रा, जोसना समेत डेढ़ सौ से अधिक महिलाएं अब अपने पैरों पर खड़ी हैं। हमारी पहल से अब तक कुल नौ समूह जुड़ चुके हैं। अभी कुल 165 महिलाएं इससे स्वावलंबी हुई हैं। बढ़ते काम को देखते हुए आगे यह संख्या तीन हजार पहुंचाने की योजना है। ग्रामीण महिलाओं को इसका लाभ मिले, इसके लिए घर-घर जाकर पैड बेचा जाता है। स्कूलों में भी बिक्री की योजना है। सेनेटरी नैपकिन प्रदेश भर में बेचा जाएगा। अब बांसी के सभी 334 समूहों की तीन हजार से अधिक महिलाओं को इस काम से जोड़ा जा रहा है। हर ग्राम संगठन में एक-एक यूनिट लगाई जा रही है।
शेष मणि सिंह, जिला विकास अधिकारी, सिद्धार्थनगर