हजार महीनों की रातों से बेहतर है शब-ए-कद्र की रात
इस्लाम धर्म में तीन रातों को बड़ी महत्ता हासिल है। यानी तीन रातें विशेष महत्व रखती हैं। यह रात है शब-ए-कद्र शब-ए-मेराज और शब-ए-बरात । तीनों रातें अलग-अलग महीनों में पड़ती हैं। शब-ए-कद्र की रात रमजान के महीने में पड़ती है।
सिद्धार्थनगर :इस्लाम धर्म में तीन रातों को बड़ी महत्ता हासिल है। यानी तीन रातें विशेष महत्व रखती हैं। यह रात है शब-ए-कद्र, शब-ए-मेराज और शब-ए-बरात । तीनों रातें अलग-अलग महीनों में पड़ती हैं। शब-ए-कद्र की रात रमजान के महीने में पड़ती है।
शब-ए-कद्र यानी लैलतुल कद्र जिसके मायने है अजीम रात। यह रात हजार महीनों की रातों से अफ•ाल करार दी गई है। कहा जाता है कि खुशनसीब हैं वह लोग जिनको इस मुकद्दस रात की इबादत नसीब हो जाए। जहां तक धार्मिक उलेमा की बात है, तो बहुत सारे उलेमा इस मखसूस रात के बारे में कहते हैं कि जिस तरह सूर-ए-यासीन (कुरान पाक का एक खास सूरा) कुरान पाक का दिल है, उसी तरह शब-ए-कद्र रमजानुल मुबारक का दिल है।
रमजान के आखिरी दस दिनों में ही एक रात को शब-ए-कद्र की मुकद्दस रात का दर्जा दिया गया है। माना जाता है कि रमजान के अंतिम अशरे की रात जैसे 21, 23, 25, 27 व 29 की रातों में एक रात शब-ए-कद्र की रात में समाहित है। बहुत सी तारीखों में 21, 23 व 27 की रात को विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। शब-ए-कद्र की इस रात में मुसलमानों की सबसे अहम किताब कुरान-ए-शरीफ आसमान से नाजिल हुई।
रमजान का आखिरी अशरा मंगलवार से शुरू हुआ। इस अशरे की अहमियत काफी अधिक बताई जाती है। इन दस दिनों में अल्लाह ताला ने एक ऐसी रात अता फरमायी जो एक हजार महीनों की रातों से अफजल है। परवर दिगारे आलम इस रात की दुआओं को जरूर कुबूल करता है तथा अपने नेक बंदों के लिए रहमतों की बारिश कर देता है। इस रात सूर-ए-कद्र, नमाज, तिलावते कलाम पाक के अलावा तमाम खास सूरे की तिलावत मखसूस करार दी गई है। आखिरी अशरे में ऐतकाफ का भी खास महत्व दिया गया है। ऐतकाफ का मतलब 21 वीं रमजान को मगरिब की नमाज के बाद मस्जिद में इबादत के लिए बैठ जाएं और ईद का चांद दिखाई देने के बाद ही बाहर आएं। इस दौरान नित्यक्रिया के अलावा बाहर निकलना मना है।