लक्ष्य को लेकर परिश्रम करना ही वैज्ञानिक मनोवृत्ति

किसान इंटर कालेज उसका बाजार सिद्धार्थनगर के प्रधानाचार्य संजय कुमार गुप्ता ने बताया कि वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति अनवरत एक लक्ष्य की दिशा में गहन परिश्रम करता है। कभी कभी समय ज्यादा लगता है। वह हारता भी है लेकिन वह हार जीत की परवाह किए बिना निरन्तर आगे बढ़ता है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 10:52 PM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 10:52 PM (IST)
लक्ष्य को लेकर परिश्रम करना ही वैज्ञानिक मनोवृत्ति
लक्ष्य को लेकर परिश्रम करना ही वैज्ञानिक मनोवृत्ति

सिद्धार्थनगर : किसान इंटर कालेज, उसका बाजार, सिद्धार्थनगर के प्रधानाचार्य संजय कुमार गुप्ता ने बताया कि वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति अनवरत एक लक्ष्य की दिशा में गहन परिश्रम करता है। कभी कभी समय ज्यादा लगता है। वह हारता भी है, लेकिन वह हार जीत की परवाह किए बिना निरन्तर आगे बढ़ता है। वह मायूस नहीं होता। उसकी सोच सकारात्मक होती है। कुछ लोग अपने कार्य में इतने तल्लीन रहते हैं कि मुख्य धारा में आते ही नहीं, इन्हें हम जान ही नहीं पाते, क्योंकि ये नाम के नहीं काम के शौकीन होते हैं। ये लोग धार्मिक बातों को भी तार्किकता की कसौटी पर परखना चाहते हैं, इसका अर्थ ये नहीं कि ये नास्तिक होते हैं बल्कि इनका उद्देश्य विचारों को वैज्ञानिक आधार देना होता है। विज्ञान का अर्थ सिर्फ विषय ज्ञान ही नहीं बल्कि विशिष्ट ज्ञान या विशेषज्ञता से ग्रहण करते हैं। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का व्यक्ति हर विषय, मुद्दे व तथ्य पर तार्किकता से सोचता है और सूक्ष्म विश्लेषण करता है। ये हर मुद्दे को बारीकी से समझना चाहते हैं और बिना गहन अध्ययन, विश्लेषण के कोई दावे नहीं करते, इनके तथ्य प्रमाणिक व प्रयोग सिद्ध होते हैं। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है और सोचने की शक्ति ही उसे एक दूसरे से अलग करती है। एक ही वस्तु को लोग अलग अलग नजरिए से देखते हैं। एक छोटा बच्चा खिलौने से खेलता है तो दूसरा उसे तोड़कर उसका सूक्ष्म अवलोकन करता है। देखता है कि उसमें क्या क्या है, वह वस्तु को बड़े ध्यान से देखता है, कई तरह के सवाल करता, उसके सवाल तार्किक और आश्चर्यचकित करने वाले होते हैं। कुछ बच्चों में यह गुण जन्मजात होते हैं तो कुछ घर पर या आस पास के लोगों के सकारात्मक कार्य को देखकर उधर आकर्षित होते हैं, कुछ बच्चों में बड़ा होने पर ' कुछ करने का जज्बा जागता है और लोगों के कार्य, वक्तव्य और तल्लीनता को देखकर वे देश, समाज व संस्कृति के लिए कुछ करना चाहते हैं, जिससे वे इधर आकर्षित होते हैं।

भारतीयों की सोच प्राचीन काल से ही सकारात्मक और वैज्ञानिक रही है और कई पुरानी धारणाएं व तथ्य आज भी सत्य प्रतीत होते हैं। कई प्रथाओं व परम्पराओं के वैज्ञानिक आधार हैं। ओटोहन ने लिखा है कि उसे परमाणु बम बनाने की प्रेरणा व विचार महाभारत के ब्रह्मास्त्र से ही मिली। रावण के पुष्पक विमान और गणेश जी के गजमुख के विषय में खोजें अभी तक देश विदेश में हो रही हैं। शब्दभेदी बाण और आज के स्वचालित विमानों को जोड़कर देखा जा रहा है, संजीवनी बूटी खोज का विषय है। कई प्राचीन औषधियां आज भी आयुर्वेद में पाई जाती हैं। इस कोरोना काल में भी विश्व हमारी तरफ आयुर्वेद के लिए देख रहा था, हमने अपने आप को साबित भी किया और सराहना भी पाई। दवाओं के क्षेत्र में हम जर्मनी को पछाड़कर पहले पायदान पर आ गए। विश्व के कई विश्वविद्यालयों व संस्थाओं में भारतीयों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। इस प्रकार हमारी प्राचीन सोच आज भी चरितार्थ है, अंतर बस इतना है कि कल हम '' विज्ञान को धर्म से जोड़ते थे और आज धर्म को विज्ञान से जोड़ना चाहते हैं। मनुष्य को किसी भी दिशा में सकारात्मक सोच रखना चाहिए। इसमें समाज, विज्ञान और देश का हित होता है।

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