सार्वजनिक संपत्तियां हमारी धरोहर
अशर्फी लाल महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. केपी त्रिपाठी ने कहा कि सार्वजनिक संपत्तियां हमारी धरोहर हैं। आने वाली पीढ़ी भी इनकी कद्र करें और इन्हें संरक्षित सुरक्षित रखने में अपना योगदान दें इसके लिए हमें पहले इनका सम्मान करना चाहिए।
सिद्धार्थनगर : अशर्फी लाल महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. केपी त्रिपाठी ने कहा कि सार्वजनिक संपत्तियां हमारी धरोहर हैं। आने वाली पीढ़ी भी इनकी कद्र करें और इन्हें संरक्षित सुरक्षित रखने में अपना योगदान दें इसके लिए हमें पहले इनका सम्मान करना चाहिए। यह संपत्तियां समाज के लिए हमेशा मददगार रहीं हैं और आगे भी यह तभी मददगार होंगी जब हमारी पीढ़ी के मन में भी इनका सम्मान करने का भाव रहेगा। हिमालय की तलहटी में बसे जनपद का ऐतिहासिक तहसील बांसी प्रवेश द्वार है। इस नगर में कई ऐतिहासिक व सार्वजनिक संपत्तियों का समावेश है जो इस नगर की गरिमा को बढ़ाता है। यह नगर अनेक राजा, प्रासादों, पुरातात्विक सभ्यताओं, संस्कृतियों व स्मारकों को संजोकर नगर के रूप में अब भी महिमा मंडित है। यहां की भव्य इमारतें, प्राचीन हवेलियां, खंडहर एवं तंग गलियां यह सिद्ध करने में सक्षम हैं कि बांसी मध्य युगीन कालखंड का एक वैभवशाली नगर रहा है। प्राचीन रियासत बांसी, चंगेरा इस्टेट, मिश्रा इस्टेट, चेतिया इस्टेट, गौरी इस्टेट जैसे अनेकों सार्वजनिक भवन हैं। इसी प्रकार अंग्रेजी शासन काल में बना प्राइमरी पाठशाला रामगढ़, राप्तीनगर में ब्रिटिश काल में बना नील मथान उद्धार की बाट जोह रहा है। मुगल काल में रामगढ़ मार्ग पर बना शेरशाह सूरी पुल भी अतिक्रमण का शिकार होकर अपनी मजबूती को बता रहा है। इतना ही नहीं मौर्य कालीन इतिहास का महादेवा शिवसागर भी अपनी प्राचीनता एवं महत्ता खोता जा रहा है। उपरोक्त के अतिरिक्त 1823 में बना मुंसिफ न्यायालय, पुरानी तहसील भवन, जवाहर नवोदय विद्यालय, जिला प्रशिक्षण संस्थान, बसंतपुर सीएचसी, उच्च पावर क्षमता का विद्युत सबस्टेशन, जिलास्तरीय उपडाकघर, जिले की सबसे बड़ी एवं ऐतिहासिक कोतवाली बांसी, कागजों में सिमटा महिला चिकित्सालय, बांसी चौराहे पर बना रोडवेज बस स्टेशन आदि सभी सार्वजनिक स्थलों, संस्थाओं एवं संपत्तियों की दशा अत्यंत दयनीय एवं चिंताजनक है। इन्हें हमारे सम्मान की जरूरत है। इससे इनका गौरवशाली इतिहास ही न केवल जिंदा रहेगा बल्कि संपत्तियां हमेशा हमारे काम आती रहेंगी।