पौधशाला में कर्मी नहीं, पौधों का भी टोटा
उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने लगभग इक्कीस वर्ष पहले कस्बे में राजकीय पौधशाला इस उद्देश्य से प्रारंभ की थी कि तहसीलक्षेत्र के किसानों को फलदार वृक्ष के पौधों के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। कम रेट पर उन्हें उम्दा नस्ल के पौधे मिलेंगे और फूल पौधों के शौकीन भी अपने घर आंगन को महका सकेंगे।
सिद्धार्थनगर : उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने लगभग इक्कीस वर्ष पहले कस्बे में राजकीय पौधशाला इस उद्देश्य से प्रारंभ की थी कि तहसीलक्षेत्र के किसानों को फलदार वृक्ष के पौधों के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। कम रेट पर उन्हें उम्दा नस्ल के पौधे मिलेंगे और फूल पौधों के शौकीन भी अपने घर आंगन को महका सकेंगे। सारी उम्मीदें यहां धरी रह गई हैं, क्योंकि राजकीय पौधशाला सिर्फ एक माली के भरोसे चल रही है।
डुमरियागंज कस्बे में राजकीय पौधशाला का हाल बदहाल है। यहां के पौधे देखरेख व कटिग आदि न होने के चलते सड़ रहे हैं अथवा झाड़ियों में तब्दील हो चुके हैं। पांच वर्ष पहले पाली हाउस का प्लांट तो लगा, लेकिन देखरेख न होने के चलते पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। ऊपर लगने वाली शीट लापता हो चुकी है, और जालियां जंग खाती जा रही हैं। पौधशाला में जलनिकासी की व्यवस्था न होने के चलते जलभराव हो जाता है। यहां के अधिकतर पौधे सड़ चुके हैं तो कुछ रोग लगने के चलते सूखते जा रहे हैं। किसानों की सहूलियत के लिए बनी पौधशाला मौजूदा समय में बेमतलब साबित हो रही है।पौधशाला की देखरेख के लिए तैनात माली बसंत बिहारी चार वर्ष पहले बस्ती से स्थानांतरित हो कर आए, लेकिन हालात से हार मान बैठे। रामपाल व फेरई दैनिक वेतन भोगी हैं। उनसे काम तो महीने भर लिया जाता है,लेकिन मानदेय सिर्फ 25 दिन का मिलता है।
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पौधों की किल्लत-
मौजूदा समय में पौधशाला में आम, लीची, नींबू,कटहल,अमरूद के पौधे सीमित संख्या में हैं। बीजू प्रजाति के पौधों का रेट 10 रुपया तो अन्य 39 रुपया की दर से बिकते हैं। फूलों की प्रजाति में सिर्फ चांदनी,गुड़हल व रातरानी के पौधे हैं। पौधों की बेहतर नस्ल यहां नहीं है जिसके चलते लोगों को दर दर भटकना पड़ता है।
जल निकासी की बनाई जा रही व्यवस्था
उद्यान इंस्पेक्टर संदीप वर्मा ने बताया कि पौधशाला के उच्चीकरण व जलनिकासी की व्यवस्था के लिए कार्ययोजना बनी है। स्वीकृति मिलने पर कार्य कराया जाएगा।