जर्जर भवन में चल रही ओपीडी, हादसे की आशंका

इटवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन जर्जर है। ये ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में भी है। होना ये चाहिए कि इसे चिन्हित करते हुए चेतावनी लिखनी चाहिए कि बिल्डिग दयनीय है इधर आना खतरे से खाली नहीं है। परंतु मजबूरी कि इसी भवन में न केवल ओपीडी चलाई जाती है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 18 Sep 2021 10:51 PM (IST) Updated:Sat, 18 Sep 2021 10:51 PM (IST)
जर्जर भवन में चल रही ओपीडी, हादसे की आशंका
जर्जर भवन में चल रही ओपीडी, हादसे की आशंका

सिद्धार्थनगर : इटवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन जर्जर है। ये ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में भी है। होना ये चाहिए कि इसे चिन्हित करते हुए चेतावनी लिखनी चाहिए कि बिल्डिग दयनीय है, इधर आना खतरे से खाली नहीं है। परंतु मजबूरी, कि इसी भवन में न केवल ओपीडी चलाई जाती है। बल्कि यहीं पर जनरल, कोविड व मस्तिष्क वार्ड भी संचालित किए जा रहे हैं। एक्सरे की जांच के अलावा दवा का स्टोर रूम भी इसी भवन में चल रहा है।

अस्पताल के पुराने भवन का निर्माण वर्ष 1989 में हुआ। वर्तमान में इसकी स्थिति ये है कि प्रथम तल से दूसरे तल की ओर जाएं तो सीढ़ी के ऊपर से प्लास्टर उखड़ कर गिर रहा है। ईंटें दिखाई दे रही हैं, कब कोई ईंट किसी के ऊपर गिर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है। सीएचसी में प्रतिदिन 200 से 250 मरीज आते हैं। यहां पर्ची काटने के अलावा छह-छह डाक्टर का ओपीडी चलता है। चूंकि सारे महत्वपूर्ण वार्ड यहीं पर हैं, इसीलिए मरीजों के अलावा तीमारदारों, डाक्टर व अन्य स्टाफ का आना-जाना लगा रहता है। भवन के दक्षिण अगर कोई देख ले तो डर जाएगा। यहां काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मी हर समय सहमें रहते हैं। इन दिनों बरसात के मौसम में स्थिति और विकट बनी हुई है।

भवन की दयनीय स्थिति को देखते हुए सबसे पहले तीन जुलाई 2019 को निष्प्रयोजन के लिए मुख्य चिकित्साधिकारी को पत्र भेजा गया। इसके बाद 21 अक्टूबर, 2020 और 17 नवंबर 2020 को पुन: रिमाइंडर भेजा गया। जिसके बाद पीडब्लूडी विभाग के अभियंता की टीम आई। फिर इसके बाद ध्वस्तीकरण प्रस्ताव पर मुहर लगी। इसके सारी फाइल पूरी होकर लखनऊ भेजी गई, जहां प्रस्ताव पर कैबिनेट की मंजूरी मिलनी है, परंतु अभी तक इसकी मंजूरी नहीं मिल सकी है। अस्पताल में अतिरिक्त स्थान नहीं है, इसलिए मजदूरी में अधिकांश स्वास्थ्य सेवाएं यही पर संचालित की जा रही हैं।

अधीक्षक डा. बीके वैद्य ने कहा कि बिल्डिग वास्तव में दयनीय है। यहां कार्य करना खतरे से खाली नहीं है, परंतु मजबूरी है। ध्वस्तीकरण का प्रस्ताव गया है, जिसके बाद यहां 50 बेड का अस्पताल बनना प्रस्तावित है। भवन होकर भूमि खाली हो जाएगी तो फिर बजट के लिए प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी।

क्या कहते हैं नागरिक

अजय कुमार, महेंद्र, रामपाल, फिरोज अहमद, सुनील आदि का कहना है कि अस्पताल आने में डर लगता है। चूंकि यहीं पर डाक्टर बैठते हैं। जांच, वार्ड के अलावा दवाएं भी यहीं से मिलनी रहती है, इसलिए हर समय खतरा मंडराता रहता है।

सीएमओ डा. संदीप चौधरी ने कहा कि प्रक्रिया में तेजी लाई गई है। ध्वस्तीकरण फाइल पर जैसे ही कैबिनेट की स्वीकृति मिल जाती है। इसको गिराने का कार्य प्रारंभ कराया जाएगा। वैकल्पिक व्यवस्था के लिए भी रास्ते देखे जा रहे हैं।

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