प्रदूषण से काली हो गई कुआनो नदी

उपेक्षा का आलम यह है कि जहां देश की प्राचीन नदियों को संरक्षित रखने के लिए नामामि गंगे के तहत कार्य हो रहा है वहीं कुआनो को केंद्र अथवा राज्य सरकार से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। प्रदूषण की मार से इस नदी के पानी का रंग पूरी तरह काला पड़ चुका है।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 27 Nov 2020 10:09 PM (IST) Updated:Fri, 27 Nov 2020 10:09 PM (IST)
प्रदूषण से काली हो गई कुआनो नदी
प्रदूषण से काली हो गई कुआनो नदी

सिद्धार्थनगर : सैकड़ों बीघा कृषि भूमि को सिंचित करने वाली कुआनो नदी अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत है। उपेक्षा का आलम यह है कि जहां देश की प्राचीन नदियों को संरक्षित रखने के लिए नामामि गंगे के तहत कार्य हो रहा है वहीं कुआनो को केंद्र अथवा राज्य सरकार से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। प्रदूषण की मार से इस नदी के पानी का रंग पूरी तरह काला पड़ चुका है। पानी पीने लायक तो दूर सिचाई के योग्य भी नहीं है। इसमें चीनी मिलों का कचरा लंबे समय से गिराया जा रहा है।

घने जंगलों के बीच बह रही कुआनो नदी आध्यात्मिक व वैज्ञानिक रहस्यों को छिपाए हुए है। यह रहस्य ही नहीं प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की कड़ी भी है। दुर्भाग्य की बात यह है कि तराई के प्रमुख अवशेष के रूप में मानी जाने वाली इस नदी के संरक्षण की जिम्मेदारी किसी पर नहीं है। नदी का बहराइच जिले के बसऊपुर गांव के पास सोते के रूप में प्रवाह शुरू होता है। पश्चिम से पूरब की ओर जैसे -जैसे नदी आगे बढ़ती है। फैलाव के साथ गहराई भी बढ़ती जाती है। नदी की विचित्रता जमीन के अंदर से निकलने वाले हजारों छोटे-छोटे जलस्त्रोत हैं जो वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है। आबादी वाले क्षेत्रों में जलकुंभी व अन्य कूड़ा करकट से पटी यह नदी अपने वजूद से संघर्ष करती दिखाई दे रही है। इसके संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों ने कई बार आवाज बुलंद की, लेकिन शासन तक उनकी आवाज नहीं पहुंच रही है। एसडीएम त्रिभुवन ने कहा कि सिचाई विभाग से वार्ता करके सफाई कराई जाएगी। चीनी मिलों का कचरा अगर गिराया जा रहा है तो नोटिस जारी कर कार्रवाई की जाएगी।

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