कुआनों को है भगीरथ का इंतजार

सैकड़ों बीघा कृषि भूमि को सिचित करने वाली कुआनो नदी अब अपना अस्तित्व बचाने को संघर्षरत है। उपेक्षा का आलम यह है कि जहां देश की प्राचीन नदियों को संरक्षित रखने के लिए योजना के तहत कार्य हो रहा है वहीं कुआनों को केंद्र अथवा राज्य सरकार से फूटी कौड़ी नहीं मिली।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 11:27 PM (IST) Updated:Wed, 12 May 2021 11:27 PM (IST)
कुआनों को है भगीरथ का इंतजार
कुआनों को है भगीरथ का इंतजार

डुमरियागंज: सैकड़ों बीघा कृषि भूमि को सिचित करने वाली कुआनो नदी अब अपना अस्तित्व बचाने को संघर्षरत है। उपेक्षा का आलम यह है कि जहां देश की प्राचीन नदियों को संरक्षित रखने के लिए योजना के तहत कार्य हो रहा है वहीं कुआनों को केंद्र अथवा राज्य सरकार से फूटी कौड़ी नहीं मिली। गर्मी में पानी घटने के बाद प्रदूषण की मार से इस नदी के पानी का रंग पूरी तरह काला पड़ चुका है। पानी पीने लायक तो दूर सिचाई के योग्य भी नहीं है। इसमें विभिन्न चीनी मिलों का कचरा लंबे वक्त से गिराया जा रहा है।

घने जंगलों के बीच बह रही कुआनो नदी आध्यात्मिक व वैज्ञानिक रहस्यों को छिपाए हुए हैं। यह रहस्य ही नहीं प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने की कड़ी भी है। दुर्भाग्य की बात यह है कि तराई के प्रमुख अवशेष के रूप में मानी जाने वाली इस नदी के संरक्षण की जिम्मेदारी किसी पर नहीं है। नदी का बहराइच जिले के बसऊपुर गांव के पास सोते के रूप में प्रवाह शुरू होता है। पश्चिम से पूरब की ओर जैसे -जैसे नदी आगे बढ़ती है। फैलाव के साथ गहराई भी बढ़ती जाती है। दोनों ओर घने जंगल जिसमें साल, सागौन के अलावा दुर्लभ प्रजाति के सिरस वृक्ष की प्रजातियां भी पाई जाती है। नदी की विचित्रता जमीन के अंदर से निकलने वाले हजारों छोटे-छोटे जलस्त्रोत हैं जो वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है। आबादी वाले क्षेत्रों में जलकुंभी व अन्य कूड़ा से पटी यह नदी अपने वजूद से संघर्ष करती दिखाई दे रही है। इसके संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों ने कई बार आवाज बुलंद की, लेकिन शासन तक उनकी आवाज नहीं पहुंच रही है। एसडीएम त्रिभुवन ने कहा कि सिचाई विभाग से वार्ता कर सफाई के निर्देश दिए गए हैं। चीनी मिलों का कचरा अगर गिराया जा रहा है तो नोटिस जारी की जाएगी, जुर्माना लगाया जाएगा।

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