इंद्रियों को वश में करना मनुष्य के लिए जरूरी

कस्बे के मोदीनगर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन पं. राकेश शास्त्री ने कहा कि इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेने से भगवान का सानिध्य हासिल होता है। आजकल मानव इंद्रियों के वशीभूत होकर ईश्वर से दूर होता जा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 26 Oct 2021 10:45 PM (IST) Updated:Tue, 26 Oct 2021 10:45 PM (IST)
इंद्रियों को वश में करना मनुष्य के लिए जरूरी
इंद्रियों को वश में करना मनुष्य के लिए जरूरी

सिद्धार्थनगर : कस्बे के मोदीनगर में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन पं. राकेश शास्त्री ने कहा कि इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेने से भगवान का सानिध्य हासिल होता है। आजकल मानव इंद्रियों के वशीभूत होकर ईश्वर से दूर होता जा रहा है।

गोवर्धन पूजा का महत्व स्थापित करते हुए आचार्य ने बताया कि गो का अभिप्राय इंद्रियों से है। अर्थात इंद्रियों को वश में करने के बाद मनुष्य किसी भी परिस्थिति में आपत्ति का सामना कर सकता है। उन्होंने कहा कि इंद्रियों पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद मनुष्य के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है। और यह एक तरह से भगवान का सानिध्य ही है। क्योंकि संसार में जितनी भी सकारात्मक ऊर्जा है, वह ईश्वर का ही प्रतिरूप है। भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उन्होंने माखन चोरी के प्रसंग पर प्रकाश डाला। कालिया नाग के वध को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बताते हुए कहा कि भागवत कथा सुनने का सही लाभ तभी है जब मनुष्य अपने अंदर की बुराइयों अर्थात कालिया नाग को नाथ कर अपने वश में कर ले। रामवनवास का मंचन देख भावुक हुए दर्शक

सिद्धार्थनगर : आदर्श रामलीला समिति के तत्वावधान में सोमवार की रात कलाकारों ने राम वनवास का मार्मिक मंचन किया, जिसे देख दर्शक भावुक हो उठे।

कलाकारों ने दिखाया कि श्रीराम के विवाह के बाद अवध में खुशियां मनाई जा रही थी। कुछ वर्ष बाद महाराजा दशरथ ने राम के राज्याभिषेक की तैयारियां शुरू करा दीं। राज्याभिषेक की तैयारियां होने लगी और उत्सव मनाया जाने लगा, लेकिन इस दौरान रानी कैकेई की कुबड़ी दासी मंथरा ने याद दिलाया कि राजा दशरथ ने उन्हें दो वरदान देने को कहे थे। पहले वरदान में वे राम को 14 वर्ष का वनवास और दूसरे में भरत को राजगद्दी मांग लें। राजा दशरथ से कैकेई हठ पूर्वक वरदान मांगती हैं। राजा दशरथ उसे समझाते हैं कि भरत को राजगद्दी देने को तैयार हैं, पर राम को वनवास न मांगे परंतु कैकेई नहीं मानती। अवध में जहां खुशियां मनाई जा रही थीं, वहां कोहराम मंच जाता है और प्रभु श्रीराम वनवास के लिए तैयार हो जाते हैं। राजा दशरथ मूर्छित होकर गिर जाते हैं, माता कौशल्या और सुमित्रा भी दुखी हो जाती हैं। सुमित्रा प्रभु श्री राम के साथ अपने पुत्र लक्ष्मण को भी भेज देती हैं और कहती हैं कि जहां राम होंगे वहीं अयोध्या होगी। माता सीता भी वन जाने के लिए तैयार हो जाती हैं। आर्य सुमंत रथ पर श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता को बैठाकर जैसे ही चलते हैं, नगर वासी पीछे-पीछे विलाप करते हुए चल देते हैं।

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