जांच प्रक्रिया नहीं हो सकी पूरी, कैसे मिले आवास

नगर पंचायत इटवा व बिस्कोहर में प्रधानमंत्री आवास के लिए अभी पात्रों को और इंतजार करना पड़ेगा। करीब छह महीने पहले इन्होंने आवेदन किया था परंतु अभी तक जांच प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो सकी है। ऐसे में इन गरीबों के लिए आवास की आस कब पूरी होगी यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 22 Jun 2021 11:42 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jun 2021 11:42 PM (IST)
जांच प्रक्रिया नहीं हो सकी पूरी, कैसे मिले आवास
जांच प्रक्रिया नहीं हो सकी पूरी, कैसे मिले आवास

सिद्धार्थनगर : नगर पंचायत इटवा व बिस्कोहर में प्रधानमंत्री आवास के लिए अभी पात्रों को और इंतजार करना पड़ेगा। करीब छह महीने पहले इन्होंने आवेदन किया था, परंतु अभी तक जांच प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो सकी है। ऐसे में इन गरीबों के लिए आवास की आस कब पूरी होगी, यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

दोनों नगर पंचायतें फरवरी 2020 को अस्तित्व में आईं। टाउन एरिया का दर्जा मिला तो डूडा विभाग की ओर से प्रधानमंत्री (शहरी) आवास के लिए प्रक्रिया शुरू हुआ। पहले चरण में बिस्कोहर में 1080 व इटवा में 700 कुल 1780 लोगों के आवेदन भराए गए। एसडीएम की अध्यक्षता में

कानूनगो व लेखपाल की टीम द्वारा जांच की गई, तो बिस्कोहर में 500 तो इटवा 370 कुल 870 लोग पात्र पाए गए। फिर डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट फाइल) बनाकर शासन को भेजी गई। इसमें कुछ को पहली तो कुछ के खाते में दूसरी किस्त भेजी गई। चूंकि सर्वे में ज्यादा लोग छूट गए थे, इसलिए फिर से आवेदन लेना प्रारंभ किया गया। दिसंबर 2020 में इटवा व बिस्कोहर से एक-एक कुल दो हजार फार्म भराए गए। छह महीने का समय पूरा हो गया, अभी तक जांच प्रक्रिया तक पूर्ण नहीं हो सकी है। इधर बरसात का मौसम शुरू हो गया है। कच्चे व छप्पर के मकान में रह रहे लोगों की जिदगी कष्टदायक बीत रही है। विभाग को इंतजार है कि जांच प्रक्रिया पूरी हो तो फिर इनका डीपीआर बनाकर भेज जाए। जिससे धन की स्वीकृति मिल सके।

तकलीफ में गुजर रही जिदगी

दोनों नगर निकाय में हजारों गरीब ऐसे हैं, जिनके पास पक्का मकान नहीं है। आवेदन भराए गए तो उम्मीद बंधी कि अब खुद का पक्का मकान हो जाएगा, मगर समय बीतने के साथ लोग मायूस होते जा रहे हैं। बिस्कोहर निवासी राजू पासवान के परिवार में पत्नी के अलावा चार बच्चे हैं। मजदूरी से जैसे-तैसे दो जून की रोटी का इंतजाम हो जा रहा है। खपरैल के मकान में बारिश के समय पानी टपकता था, प्लास्टिक तानकर किसी तरह उसको सुरक्षित किए हैं। मौसम कोई भी हो, छोटे से कच्चे घर में जिदगी बड़ी तकलीफ से बसर हो रही है।

सुभाष की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही है। कच्चे मकान में प्लास्टिक तानकर घर में रहते हैं। अगर प्लास्टिक नहीं लगाते तो इस बारिश में रहना मुश्किल हो जाता है। शहर का दर्जा मिला तो आस जगी कि अब उनको भी पक्के मकान की सुविधा मिल जाएगी। एक-एक करके महीना बीत रहा है, अभी तक सिर्फ निराशा हाथ लगी है।

डूडा परियोजना अधिकारी चंद्रभान ने कहा कि शहरी क्षेत्र के ऐसे सभी गरीबों को आवास दिलाना सरकार की प्राथमिकता में शामिल है, जिनके पास खुद का पक्का आवास नहीं है। नई नगर पंचायत बनने के बाद से ही इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हुई है। पहले 870 पात्रों की सूची ऊपर भेजी गई है। जिसमें कुछ को पहली और कुछ के खाते में दूसरी किस्त गई है। दिसंबर में जो आवेदन लिए गए थे, कोविड के चलते उसमें देरी हुई। इधर जांच प्रक्रिया पूर्ण कराने के लिए उपजिलाधिकारी से बात हुई है। जैसे ही जांच पूरी होती है, चयनित पात्रों का डीपीआर भेजा जाएगा।

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