मिट्टी की सेहत के लिए हरी खाद जरूरी
बंजर खेतों को उर्वर एवं उत्पादक बनाने में हरी खाद संजीवनी है। खाद तैयार करने की यह सबसे सरल व कम लागत वाली विधि है। जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्व आर्गेनिक कार्बन एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है।
सिद्धार्थनगर : तेज गर्मी से तप रही जमीन में हल्की बारिश के बाद नमी लौट आई है। जो किसान अपने कृषि भूमि की सेहत दुरुस्त करना चाहते हैं वह खेत की जोताई कर हरी खाद के रूप में ढैंचा अथवा सनई की बोआई कर सकते हैं।
इस हरी खाद से खेत को अधिक मात्रा में बायोमास प्राप्त होगा जो उपज बढ़ाने के साथ ही मिट्टी में रोग से लड़ने की ताकत को मजबूत करेगा। उक्त जानकारी सोहना कृषि विज्ञान केंद्र के डा. एसके मिश्रा ने दी।
बताया कि बंजर खेतों को उर्वर एवं उत्पादक बनाने में हरी खाद संजीवनी है। खाद तैयार करने की यह सबसे सरल व कम लागत वाली विधि है। जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्व, आर्गेनिक कार्बन, एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स, विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस, आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है। विशेष रूप से भूमि में नाइट्रोजन का भंडारण होता है, तथा भूमि उपजाऊ बनती है। जो किसान कई वर्षों से लगातार अपने खेतों में रासायनिक खाद-उर्वरक तथा अन्य जहरीले रसायनों का प्रयोग कर रहे हैं उनके लिए यह जरूरी है। मई माह में पानी की व्यवस्था वाले खेतों में हरी खाद के रूप में ढैंचा अथवा सनई की बोआई करनी चाहिए। यह ऐसी फसल है जो अंकुरित होने के बाद पानी की कमी भी झेल सकती है। बोआई के 45 दिन बाद रोटावेटर से जोताई करवाकर इसे मिट्टी में मिला दें। धान रोपाई से पहले खेत तैयार हो जाएगा और किसानों को बेहतर उपज इस खाद के चलते मिलेगी।