कृष्ण रुक्मिणी विवाह प्रेम का प्रतीक
जो कथा प्रेमी भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। भगवान कृष्ण के गुणों व उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन निश्चित किया कि वह कृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में वरण नहीं करेंगी।
सिद्धार्थनगर: जो कथा प्रेमी भगवान कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। भगवान कृष्ण के गुणों व उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मिणी ने मन ही मन निश्चित किया कि वह कृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में वरण नहीं करेंगी। उक्त बातें श्रीमद्भागवत कथा श्रवण कराते हुए बढ़नीचाफा में विनोद कृष्ण शास्त्री महाराज ने कहीं।
सोमवार की रात कथावाचक ने भगवान कृष्ण रुक्मिणी विवाह का प्रसंग सुनाया। प्रसंग पर भगवान कृष्ण व रुक्मिणी के रूप में कलाकारों की झांकी पर श्रद्धालुओं ने फूल बरसाए। कथावाचक ने भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि भगवान कृष्ण को भी इस बात का पता हो चुका था विदर्भ नरेश भीष्म की पुत्री रुक्मिणी परम रूपवती व परम सुलक्षणा है। भीष्म का बड़ा पुत्र भगवान कृष्ण से शत्रुता रखता था। बहन रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। क्योंकि शिशुपाल भी भगवान कृष्ण से द्वेष रखता था। रुक्मिणी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राह्मण को द्वारिका कृष्ण के पास भेजा व संदेश दिया हे नंद-नंदन आपको ही पति रूप में वरण किया है। मैं आपको छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं कर सकती। भगवान ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और बाधाओं का शमन करते हुए रुक्मिणी से विवाह किया। हरिश्चंद्र श्रीवास्तव, माहिर श्रीवास्तव, डा. मनीष, डा. राजीव कुमार , मनीष श्रीवास्तव रिषभ, राज सहित अन्य मौजूद रहे।