गन्ने की खेतीे छोड़ी, अब केले से ले रहे मुनाफा
गन्ना मूल्य का भुगतान न होने से परेशान किसान अन्य नकदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। सुहेलवा गांव के युवा अनुराग चौधरी इन्हीं में से एक हैं। उन्हें परेशान देख उनके रिश्तेदार ने केले की खेती करने की सलाह दी। इस पर अमल करते हुए उन्होंने करीब तीन बीघे में पचास हजार की लागत से केले की फसल उगाई ।
सिद्धार्थनगर : गन्ना मूल्य का भुगतान न होने से परेशान किसान अन्य नकदी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं। सुहेलवा गांव के युवा अनुराग चौधरी इन्हीं में से एक हैं। उन्हें परेशान देख उनके रिश्तेदार ने केले की खेती करने की सलाह दी। इस पर अमल करते हुए उन्होंने करीब तीन बीघे में पचास हजार की लागत से केले की फसल उगाई । अब तक 110 क्विंटल डेढ़ लाख रुपये में बेच चुके हैं। खेत में लगभग साठ क्विंटल फसल तैयार है।
प्रगतिशील किसान अनुराग पहले गन्ने की बोआई लगभग दस बीघे में करते थे। गत वर्ष जुलाई में करीब तीन बीघे खेत में पंद्रह रुपए प्रति पौध की दर से जी-9 प्रजाति के 950 केले के पौधे रोपे। चौदह माह बाद जब फसल में हरी छाल केले लगे तो डुमरियागंज खीरा मंडी स्थित एसी प्लांट पर गए जहां भाव तय हुआ। बताते हैं कि 50 हजार की लागत लगी थी, शेष धनराशि मुनाफे की है। बीघे के हिसाब से लगभग 50-60 हजार रुपए की बचत हो जा रही है। इसकी खेती गन्ने से आसान है। रोपाई के बाद समय-समय पर सिचाई व गुड़ाई करने के साथ कीटनाशक के छिड़काव कराने से फसल ठीक होती है।
अब आठ बीघे में करेंगे खेती
अनुराग कहते हैं कि पहली बार केले की खेती करने से अनुभव की कमी के कारण अपेक्षाकृत कम उपज हुई। एक पौध में लगभग 18-25 किग्रा केला पैदा हुआ। यदि समुचित सिचाई गुड़ाई हो तो तीस किलो तक उपज हो सकती है। अब अगली फसल आठ बीघे में लगाने की योजना है। उनसे प्रेरित होकर क्षेत्र के हरीराम, मनौव्वर हुसेन, दिलशाद, प्रमोद, अनवर आदि भी केले की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं।