सेहत की खातिर युवाओं ने हेल्दी फूड से कर ली दोस्ती

कोरोना क‌र्फ्यू में फास्ट फूड न मिलने और हेल्दी फूड के सेवन से बच्चों व युवाओं की सेहत पर भी इसका असर दिख रहा है। पहले साल की तरह ही घरों का बना खाना ही भा रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 17 May 2021 10:45 PM (IST) Updated:Mon, 17 May 2021 10:45 PM (IST)
सेहत की खातिर युवाओं ने हेल्दी फूड से कर ली दोस्ती
सेहत की खातिर युवाओं ने हेल्दी फूड से कर ली दोस्ती

शामली, जागरण टीम। कोरोना क‌र्फ्यू में फास्ट फूड न मिलने और हेल्दी फूड के सेवन से बच्चों व युवाओं की सेहत पर भी इसका असर दिख रहा है। पहले साल की तरह ही घरों का बना खाना ही भा रहा है। युवाओं की हेल्दी फूड से दोस्ती से अब उनकी आदत बन गया है। यही वजह है कि पहले फास्ट फूड या जंक फूड का नाम सुनते ही बच्चे खुश हो जाते थे तो अब लाकडाउन के बाद घर की दाल-रोटी पसंद आने लगी है। हरी सब्जियां भी खूब चाव से खा रहे हैं। यही नहीं, सूप या दूध पीने में भी ना-नुकुर नहीं हो रही है।

कोविड-19 संक्रमण बढ़ने पर लाकडाउन चल रहा है। ऐसे में फास्ट फूड की दुकानें बंद हैं। बच्चों और युवाओं दोनों की ही आदतें खुद ही बदल रही हैं। इन्होंने अब हेल्दी फूड से दोस्ती कर ली है। छुट्टी के दिनों में सक्षम सैनी व खुशी का सुबह का नाश्ता अक्सर खस्ता-पूड़ी होता था। सुबह होते ही दोनों बच्चों की जिद शुरू हो जाती थी।

गृहणी शशि बताती हैं कि परिवार के सदस्यों से बाजार से नाश्ता मंगवाकर बच्चों की जिद पूरी की जाती थी। वही हम भी यह नाश्ता कर लेते थे। बच्चे कोल्ड ड्रिक की भी पूरी जिद करते थे। पिछले साल की तरह ही फिर से लाकडाउन ने आदत बदल दी है। शुरूआत में तो बच्चों ने जिद की पर अब वो भी समझ गए हैं। इसलिए जिद नहीं करते। दोनों बच्चे सुबह कभी साबूदाने की खिचड़ी व ड्राइ फ्रूट्स मिक्स कर पोहा खा लेते हैं। कोल्ड ड्रिक की जगह पर बादाम व बनाना शेक देते हैं। इन सब चीजों को बच्चे भी बड़े चाव से खा पी रहे हैं। यह उनके लिए काफी हेल्दी डाइट है।

वहीं, शामली के दयानंदनगर निवासी विद्युतकर्मी जुगेंद्र सिंह बताते हैं कि बेटा दिनभर में पांच से छह पैकेट चिप्स खाता था। शाम को वो टिक्की-समोसा या मोमोज की जिद करता था। बिटिया को भी यही पसंद था। अब दोनों की ही आदतों में बदलाव आया है। इन्हें कभी मैगी मसाला डालकर जौ की दलिया बनाकर देते हैं। कभी घर पर ही थोड़ा पनीर तैयार कर पनीर भुजिया बना देते हैं। बाजार का खाना नुकसान तो करता ही था काफी खर्च भी बढ़ जाता था।

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