गन्ने की फसल को भेद रहा टाप बोरर

गन्ने की फसल में टाप बोरर यानी अगोला भेदक कीट लगने से किसानों की चिता बढ़ गई। यह कीट बहुत तेजी से फैल रहा है और किसान परेशान हैं। कीट के प्रकोप का असर उत्पादन गुणवत्ता पर पड़ता है। साथ ही अगोले यानी हरे चारे की कमी भी हो सकती है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 10:44 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 10:44 PM (IST)
गन्ने की फसल को भेद रहा टाप बोरर
गन्ने की फसल को भेद रहा टाप बोरर

शामली, जागरण टीम। गन्ने की फसल में टाप बोरर यानी अगोला भेदक कीट लगने से किसानों की चिता बढ़ गई। यह कीट बहुत तेजी से फैल रहा है और किसान परेशान हैं। कीट के प्रकोप का असर उत्पादन, गुणवत्ता पर पड़ता है। साथ ही अगोले यानी हरे चारे की कमी भी हो सकती है। किसान दवाओं के छिड़काव आदि कर कीट के प्रभाव को नियंत्रित करने में जुटे हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र शामली के वैज्ञानिक डा. विकास मलिक का कहना है कि आमतौर पर टाप बोरर कीट अप्रैल-मई में लगता है और अक्टूबर तक रहता है। इस बार समय से कुछ पहले बारिश हुई, जिससे कीट को अनुकूल मौसम मिला है। जिले में को-0238 प्रजाति का गन्ना ही अधिक है। उक्त गन्ने में शुगर की मात्रा काफी अधिक होती है तो कीट अधिक आकर्षित होता है। नाइट्रोजन का अधिक इस्तेमाल भी कीट के प्रकोप का एक कारण है। पूरे जिले में काफी तेजी से कीट फैलने की जानकारी मिल रही है। यह सुंडी कीट पत्तियों की गोभ में लगता है और अगोले तक पहुंच जाता है। अगोला पत्ती और गन्ने की पोरियों के बीच का भाग होता है। पत्ती, अगोले में छिद्र करने के साथ ही गन्ने की पोरियों की आंखों को क्षतिग्रस्त कर देता है। पत्तियों और अगोले पर छिद्र दिखें तो समझ लेना चाहिए कि दिक्कत शुरू हो गई है। इस कीट के फैलने से फसल की बढ़वार प्रभावित होती है। गन्ने का उत्पादन, गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता है। पत्तियां खराब हो जाती हैं, जिससे हरे चारे की कमी होती है। इस कीट की एक सीजन में पांच पीढि़यां आती हैं। एक पीढ़ी 40 दिन में जीवन चक्र पूरा करती है। एक मादा कीट 200 से 250 अंडे देकर भूरे रंग के पदार्थ गन्ने की पत्तियों की निचली सतह को ढक देते हैं। ऐसे करें बचाव

कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि परजीवी ट्राइकोग्रामा जापोनिकम से कीट को खत्म करने का काम करते हैं। सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय मेरठ में भी उक्त परजीवी के कार्ड मिल जाते हैं। यह बचाव का जैविक उपाय है। वर्तमान की स्थिति के अनुसार प्रोफेनोफास और साइपरमैथरीन का प्रयोग कीट के नियंत्रण के लिए प्रभावी है।

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