असली कोरोना योद्धा तो वास्तव में नर्स ही हैं..

कोरोना की पाजिटिव रिपोर्ट आने के बाद मैं थोड़ा घबरा गया था क्योंकि शामली जिला ही नहीं बल्कि सहारनपुर मंडल का मैं ही पहला मरीज था। सीएचसी शामली में मुझे भर्ती किया गया था। वैसे तो पूरा स्टाफ अच्छा था लेकिन नर्स मोनिका़ अंकुर और ममता ने मेरी हिम्मत को कम नहीं होने दिया।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 10:44 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 10:44 PM (IST)
असली कोरोना योद्धा तो वास्तव में नर्स ही हैं..
असली कोरोना योद्धा तो वास्तव में नर्स ही हैं..

शामली, जागरण टीम। कोरोना की पाजिटिव रिपोर्ट आने के बाद मैं थोड़ा घबरा गया था, क्योंकि शामली जिला ही नहीं, बल्कि सहारनपुर मंडल का मैं ही पहला मरीज था। सीएचसी शामली में मुझे भर्ती किया गया था। वैसे तो पूरा स्टाफ अच्छा था, लेकिन नर्स मोनिका़, अंकुर और ममता ने मेरी हिम्मत को कम नहीं होने दिया। अंजान होते हुए भी परिवार के सदस्य की तरह रिश्ता बन गया था। तभी तो दोनों के नाम आज भी मुझे याद हैं। मैंने दवा ली या नहीं, खाना अच्छे से खाया या नहीं, खाना अच्छा भी बना था या नहीं, कोई तनाव तो नहीं है, किसी प्रकार की कोई दिक्कत तो नहीं है। हर बात का ख्याल रखा गया। जब मैं पूरी तरह ठीक हो गया था तो डिस्चार्ज होने की जितनी खुशी मुझे थी, शायद उससे ज्यादा दोनों नर्स को थी। मेरे मन में उनके प्रति हमेशा सम्मान बना रहेगा। क्योंकि अपनी परवाह किए बिना उन्होंने मेरा ध्यान रखा। तमाम नर्स आज भी अपने कर्तव्य को निभा रही हैं। वास्तव में असली कोरोना योद्धा तो नर्स ही हैं। बीमारी व विषम परिस्थितियों में भी वह हमारे हौंसले को कम नहीं होने देतीं।

-शाहनवाज, कोरोना विजेता

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मैं अगस्त माह में संक्रमित हो गया था। अधिक लक्षण होने के कारण मुझे कोविड अस्पताल में भर्ती किया गया। मैं घबराया हुआ था। डर लग रहा था कि पता नहीं क्या होगा? चिकित्सकों ने भी उपचार ठीक किया, लेकिन वहां ड्यूटी करने वाली नर्स ने भाई की तरह देखभाल की थी। दवा व खाना आदि सब बातों का ध्यान रखा। जल्दी ठीक होकर घर चला जाऊंगा, यह कहते हुए हौंसला बढ़ाती थी। अगर कहूं कि नर्स असली कोरोना योद्धा है तो गलत नहीं होगा। क्योंकि संक्रमित मरीजों के सबसे अधिक संपर्क में शायद वही रहती है तो उन्हें ही सबसे अधिक खतरा भी होता है।

-गौरव शर्मा, दयानंदनगर मेरी रिपोर्ट जब पाजिटिव आई थी तो तब मैं घर में ही आइसोलेट होना चाहता था। लेकिन स्वास्थ्य संबंधित अधिक दिक्कत होने के कारण अस्पताल में भर्ती किया। अलग-अलग शिफ्ट में नर्स की ड्यूटी होती थी। मेरा ही नहीं, बल्कि भर्ती सभी मरीजों को अच्छे से ध्यान रखा जाता था। हमसे ज्यादा चिता उन्हें होती थी कि दवा वक्त पर ली या नहीं। बुखार तो नहीं है। नर्स सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करती थीं। साथ ही कोविड के आंकड़े बताती थीं कि अधिकांश मरीज पूरी तरह ठीक हो रहे हैं। कोरोना से लड़ाई में नर्सों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

-हर्षित भारद्वाज, बुढ़ाना रोड

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