नाथ ने विश्व को पढ़ाया था शास्त्रीय गायन का पाठ

किराना घराने के विश्व विख्यात शास्त्रीय गायक पंडित प्राणनाथ ने विश्व में शास्त्रीय गायन अनूठी पहचान दिलाई। शास्त्रीय गायन के प्रति दीवानगी इस कदर कि घर वाले सहमत नहीं हुए तो मात्र 13 साल की उम्र में ही घर त्याग दिया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 09:53 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 09:53 PM (IST)
नाथ ने विश्व को पढ़ाया था शास्त्रीय गायन का पाठ
नाथ ने विश्व को पढ़ाया था शास्त्रीय गायन का पाठ

जेएनएन, शामली। किराना घराने के विश्व विख्यात शास्त्रीय गायक पंडित प्राणनाथ ने विश्व में शास्त्रीय गायन अनूठी पहचान दिलाई। शास्त्रीय गायन के प्रति दीवानगी इस कदर कि घर वाले सहमत नहीं हुए तो मात्र 13 साल की उम्र में ही घर त्याग दिया। एकात गायक अब्दुल वाहिद खान की सात साल तक सेवा। पाच साल तक गुफा में जीवन व्यतीत किया। गुरुदक्षिणा के रूप में शादी। इसके बाद पूरे विश्व में शास्त्रीय गायन की पढाई। अंत में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में शास्त्रीय संगीत को विशेष पहचान दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

प्राणनाथ का जन्म 3 नवंबर 1918 में लाहौर(पाकिस्तान) में हुआ था। करीब 77 वर्ष की उम्र में 13 जून 1996 को उनका निधन हो गया। धनी परिवार में जन्मे प्राण के परिवार वालों को उनका संगीत से जुड़ाव पसंद नहीं था। इसलिए वह 13 साल की उम्र में ही घर छोड़कर किराना घराना के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक उस्ताद अब्दुल वाहिद खान के साथ कैराना में रहने लगे। शिष्य बनने से पहले उन्होंने सात साल तक खान की सेवा की। इसके बाद वह करीब दो दशकों तक उनके साथ रहे। किराना घराने के चश्मो चिराग उस्ताद मशकूर खां बताते हैं कि पंडित जी वाहिद खां साहब के इतने दीवाने थे कि उन्होंने विदेशी संगीत प्रेमियों के घरों की दीवारों पर उनकी तस्वीरें टंगवा दी थी। रहस्यवाद की ओर थे आकíषत

गुरु और शिष्य दोनों ही रहस्यवाद की ओर बेहद आकíषत थे। वाहिद मुसलमान थे और सूफीवाद के दीवाने थे, जबकि नाथ हिंदू थे। शैव संप्रदाय के प्रति उनका झुकाव था। कहा जाता है कि शिव की आराधना के लिए वह उत्तराखंड के तपकेश्वर मंदिर के नजदीक पाच साल तक गुफा में रहे। किराना शैली के सरंक्षण को सुनिश्चित करने के लिए अपने गुरु के आदेश (गुरुदक्षिणा) पर शादी की और दोबारा से सामान्य दुनिया में लौट आए। 1937 में वह आल इंडिया रेडियो के साथ जुड़े।

कठोर गायन शैली पर थे अडिग

प्राणनाथ भी अब्दुल वाहिद की अतिरिक्त-पद्धतिगत और कठोर गायन शैली पर चले। इसमें अलाप और धीमी गति पर बहुत जोर था। वह उनकी आवाज के अनुकूल तो था, लेकिन लोकप्रिय नहीं। उनके गायन ने संगीत के अलाप खंड में सटीक स्वर, स्वर और मनोदशा के क्रमिक प्रदर्शन पर बहुत जोर था।

खुद का परिचय संगीत शिक्षक के रुप में

राग भूपाली और असावरी के गायक नाथ ने खुद को एक संगीत शिक्षक के रूप में स्थापित किया। 1960 से 1970 तक वह दिल्ली विवि में काम करते रहे। वह मिल्स कालेज में संगीत के अतिथि प्रोफेसर भी थे। संयुक्त राज्य अमेरिका में जीवन

प्राणनाथ 1970 में अमेरिकी संगीतकार ला मोंटे यंग और दृश्य कलाकार मैरियन ज़ज़ीला से मिलने न्यूयार्क गए। इन दोनों ने नाथ की पहली रिकाìडग अर्थ ग्रूव : द वायस ऑफ़ कास्मिक इंडिया सुनी। संगीतकार टेरी रिले, जॉन हासेल और हेनरी फ्लायंट, डॉन चेरी और ली कोनिट्ज़ भी उनके शिक्षण से प्रभावित थे। 1972 में उन्होंने वहीं पर भारत के लिए किराना केंद्र की भी स्थापना की। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन शास्त्रीय संगीत को समíपत किया। उन्होंने देश-विदेश के कई विवि में पढ़ाया। आज ही के दिन न्यूयार्क में अंतिम सास ली।

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