सरकारी कोविड अस्पताल में भरोसे का कत्ल

तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर पर्दे के पीछे बर्बरीयत है नवाबी है

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 11:19 PM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 11:19 PM (IST)
सरकारी कोविड अस्पताल में भरोसे का कत्ल
सरकारी कोविड अस्पताल में भरोसे का कत्ल

शामली, जागरण टीम। तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है

उधर, जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो

इधर, पर्दे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है

सरकारी कोविड-2 के घिनौने सच ने जनकवि अदम गौंडवी की इन पंक्तियों को मौजूं बना दिया है। बुधवार रात यहां एक मरीज की ही मौत नहीं हुई, बल्कि भरोसे का कत्ल हुआ है। कितनी उम्मीद और भरोसे के साथ लोग अपने मरीज को डाक्टर के हाथों में देते हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनके मरीज का पूरा ध्यान रखा जा रहा होगा। यहां के एक कर्मचारी ने पूरी व्यवस्था को ही कलंकित कर दिया। अहम सवाल यह है कि तीमारदारों को अब व्यवस्था पर भरोसा कैसे होगा?

पिछले एक सप्ताह से मरीज लगातार शिकायत कर रहे हैं। व्यवस्थाओं को लेकर जो दावा किया जा रहा है, हकीकत में हालात जुदा है। तीमारदारों को मरीजों के लिए गैस सिलेंडर के लिए इधर से उधर दौड़ना पड़ रहा है। मरीज चिल्ला रहे हैं, तीमारदार इधर से उधर दौड़ लगा रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग अपने कमियों को दुरुस्त करने के बजाय तीमारदारों और मरीजों को ही गलत ठहरा रहा है।

बुधवार रात जब सत्यवान की सांस उखड़ रही थीं और तीमारदारी कर रही उनकी पत्नी अस्पताल कर्मियों से आक्सीजन देने की गुहार लगा रही थीं, उसी समय स्वास्थ्यकर्मी बेशर्मी से आक्सीजन के बदले 50 हजार रुपये रिश्वत मांग रहा था। महिला गैस के लिए गिड़गिड़ाती रही, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पूरी व्यवस्था खामोशी से उसकी बेबसी का नजारा देखती रही। उसने आसपास के लोगों और अन्य कर्मचारियों से भी कहा होगा। वह रोई-गिडगिड़ाई होगी तो अन्य कर्मियों और व्यवस्था के लगे अफसरों तक भी बात पहुंची होगी, लेकिन सब बेकार।

आखिर में मरीज की पत्नी ने जैसे- तैसे व्यवस्था करके अपने पति की जान बचाने के लिए 10 हजार रुपये रिश्वत दे भी दी, लेकिन 10 हजार रूपये लेने के बाद भी आक्सीजन नहीं दी गई। 50 हजार रुपये की मांग कायम रही। स्वास्थ्यकर्मी की जिद और बहरी व्यवस्था के सामने ही मरीज की मौत हो गई। मृतक की पत्नी का पूरी व्यवस्था से सवाल है कि आखिर उसके पति की मौत का जिम्मेदार कौन है। क्या मुकदमा दर्ज होने या आरोपित को जेल भेजने से उसके पति वापस आ जाएंगे। यही नहीं यदि कर्मचारी नहीं सुधरे और दूसरा हादसा हुआ तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा। सबसे अहम सवाल सरकारी अस्पताल पर भरोसा कैसे करेंगे लोग?

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