कूड़े में फेंका जा रहा बायोमेडिकल कचरा

बायो मेडिकल कचरा कूड़े की तरह फेंका जा रहा है। कहने को एक निजी एजेंसी से कूड़ा निस्तारण का करार है लेकिन कई निजी अस्पताल और नर्सिंग होम से सीरिज ग्लूकोज की खाली बोतलें पट्टियां आदि बायो मेडिकल कचरा इधर-उधर पड़ा मिलता है। कोरोना काल में भी न तो अस्पताल संचालक जिम्मेदारी समझ रहे हैं और न ही जिम्मेदारों को परवाह है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 03 Aug 2020 11:24 PM (IST) Updated:Tue, 04 Aug 2020 06:02 AM (IST)
कूड़े में फेंका जा रहा बायोमेडिकल कचरा
कूड़े में फेंका जा रहा बायोमेडिकल कचरा

शामली, जेएनएन। बायो मेडिकल कचरा कूड़े की तरह फेंका जा रहा है। कहने को एक निजी एजेंसी से कूड़ा निस्तारण का करार है, लेकिन कई निजी अस्पताल और नर्सिंग होम से सीरिज, ग्लूकोज की खाली बोतलें, पट्टियां आदि बायो मेडिकल कचरा इधर-उधर पड़ा मिलता है। कोरोना काल में भी न तो अस्पताल संचालक जिम्मेदारी समझ रहे हैं और न ही जिम्मेदारों को परवाह है।

जिले में 441 अस्पताल, नर्सिग होम और क्लीनिक के पंजीकरण हैं। इनमें से 50 अस्पताल व नर्सिग होम बड़े हैं। बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एंड हैंडलिग एक्ट 1998 संशोधित 2016 के तहत कोई प्रभावी कार्रवाई जिले में नहीं हुई है। दो साल पहले दो अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर कुछ समय के लिए सील किए गए थे, क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जारी प्रमाण पत्र का नवीनीकरण नहीं हुआ था।

संक्रमण फैलने का होता है खतरा

फिजिशियन डॉ. रीतिनाथ शुक्ला का कहना है कि बायोमेडिकल कचरे से सामान्य वारयल बुखार से लेकर एचआइवी, हेपेटाइटिस संक्रमण भी फैल सकता है। उनके अस्पताल से निकलने वाला कचरा संबंधित एजेंसी प्रतिदिन लेकर जाती है।

चार तरह से एकत्र होता है बायो मेडिकल कचरा

बायो मेडिकल कचरे को सामान्य कूड़े या घरों से निकलने वाले कूड़े की तुलना में अलग तरह से इकट्ठा किया जाता है। मेडिकल कचरे को चार तरह से अलग किया जाता है। लाल रंग बॉक्स में पेशाब की नली, आइवी सेट, ड्रिप सेट, नीले व सफेद डिब्बे में सीरिज, सुइयां, ब्लेड, पीले में मानक ऊअंगों का खून, दूषित रुई व पट्टी, काले में एक्सपायरी डेट की दवाएं, पेपर आदि डाले जाते हैं।

बार कोड वाली थैलियों का प्रयोग नहीं

शामली जिले में अभी बायोमेडिकल कचरे के लिए बार कोड वाली थैलियों का प्रयोग अभी नहीं हो रहा है। ग्लोबल शांति केयर अस्पताल के संचालक कुशांक चौहान का कहना है कि कुछ समय बाद ऑनलाइन व्यवस्था होगी। कितना और किस तरह का बायोमेडिकल कचरा निकल रहा है। इसकी पूरी सूचना पोर्टल पर दर्ज होगी और तभी बार कोड वाली थैलियों का प्रयोग होगा। वहीं, सरकारी अस्पतालों से निकलने वाले बायोमेडिकल कचरे का ब्योरा पोर्टल पर दर्ज होना शुरू हो गया है।

इन्होंने कहा

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही किसी अस्पताल, नर्सिंग होम का पंजीकरण किया जाता है। रोजाना मेरठ से वाहन आता है और कचरा लेकर जाता है। स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर निरीक्षण आदि करता है।

-डॉ. संजय भटनागर, सीएमओ, शामली

मेरठ की सिनर्जी वेस्ट मैनेजमेंट एजेंसी बायो मेडिकल कचरे का निस्तारण करती है। अस्पतालों का जब एजेंसी से करार हो जाता है, उसके बाद ही बोर्ड से प्रमाण पत्र दिया जाता है। इसके आधार पर स्वास्थ्य विभाग में पंजीकरण होता है।

- डॉ. डीसी पांडेय, सहायक वैज्ञानिक अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुजफ्फरनगर

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