जीवनदायिनी के जीवनदान को चला रहे अभियान
जिस तरह एटीएम से रुपये निकालने के लिए जरूरी है कि उस मशीन में रुपये डाले भी जाएं। उसी तरह जितने पानी का हम दोहन कर रहे हैं जमीन को उतना पानी वापस करना भी आवश्यक है। अन्यथा जिस तरह नोटों के अभाव में एटीएम खाली हो जाते हैं पानी भी एक दिन तलाशना होगा। यह कहना है लोकभारती संस्था के ब्रज मेरठ व उत्तराखंड के प्रभारी संजय उपाध्याय का। पिछले कई वर्षों से जल संरक्षण के लिए काम कर रहे संजय कहते हैं कि जल संरक्षण के लिए सबसे बड़ा माध्यम है खेती।
जेएनएन, शाहजहांपुर : जिस तरह एटीएम से रुपये निकालने के लिए जरूरी है कि उस मशीन में रुपये डाले भी जाएं। उसी तरह जितने पानी का हम दोहन कर रहे हैं जमीन को उतना पानी वापस करना भी आवश्यक है। अन्यथा जिस तरह नोटों के अभाव में एटीएम खाली हो जाते हैं पानी भी एक दिन तलाशना होगा। यह कहना है लोकभारती संस्था के ब्रज, मेरठ व उत्तराखंड के प्रभारी संजय उपाध्याय का। पिछले कई वर्षों से जल संरक्षण के लिए काम कर रहे संजय कहते हैं कि जल संरक्षण के लिए सबसे बड़ा माध्यम है खेती। खेती के गलत तरीके के कारण वाटर लेवल नीचे जा रहा है। नदियां सूख रही हैं। कारण धरती के जलधारण करने की क्षमता खत्म हो रही है। इसलिए लोकभारती संस्था ने गो आधारित प्राकृतिक खेती व खत्म हो चुकीं नदियों को फिर से सदानीरा बनाने पर काम शुरू किया है। परिणाम सकारात्मक आए हैं। अस्तित्व खो चुकी गोमती की सहायक भैंसी नदी में 25 किमी. तक पानी आ गया है। भद्रशीला नदी पर भी काम शुरू हो गया है।
49 गांवों में हुआ काम
भैंसी का उद्गम पीलीभीत से है। शाहजहांपुर में बंडा के नवादा ढाह गांव से यह शुरु होती है। लोकभारती ने करीब 49 गांवों में अध्ययन यात्रा निकाली। तीन गांवों में राजस्व अभिलेखों में नक्शे भी नदी गायब थी। पंचायत कर लोगों से संवाद किया। वालंटियर के रूप में अपने साथ जोड़ा। करीब एक किमी. जमीन लोगों ने नदी के लिए छोड़ी। खास बात यह कि न लेखपाल बुलाने पड़े, न पुलिस। आठ स्थानों पर प्रशासन से कहकर पुलिया बनवाईं।अप्रैल 2019 में ब्रज प्रांत प्रमुख डॉ. विजय पाठक व उनकी अगुवाई में काम शुरू हुआ। फरवरी 2020 में नदी में पानी आ गया।
नवादा में अब भी अड़चन
हालांकि अब भी नवादा ढाह में अड़चन हैं। जिस कारण नदी भैंसासुर तालाब से नहीं जुड़ पा रही थी। इसके लिए संजय ने विकल्प निकाला। उन्होंने यहां से करीब एक किमी. दूर लुहिची व गहलुइया गांव में शारदा नहर के पानी में डूबी सौ एकड़ से ज्यादा जमीन का मुआयना किया। वहां लोग पानी से परेशान थे। उन्होंने वालंटियरों की मदद से दोनों ओर से छह फीट ऊंचा बंधा बनाया। उसके बाद नालों की मदद से उस पानी को भैंसी नदी में ले आए। 25 किमी. दायरे में दोनों ओर एक-एक किमी. तक जो बोरवेल सूख गए थे वे पानी देने लगे हैं। करीब हजार हेक्टेयर जमीन सिचित हो रही है।
तो पूरी नदी हो जाए सदानीरा
हालांकि अभी खोदाई पूरी तरह से सही नहीं हुई है। जिस कारण फ्लो प्रभावित हो रहा है। सिचाई विभाग से कई बार संपर्क किया, पर अधिकारी ध्यान नहीं दे रहे। दो से तीन बड़ी पुलिया अधिक ऊंची होने के कारण ठोकर बन रही हैं। जिस कारण पानी आगे नहीं जा पा रहा। संजय बताते हैं कि लुहिची गहलुइया की तरह कई और स्थानों पर जलभराव है। ऐसे कुलावों व वेटलैंड को भी नदी में मोड़ा जाए तो पूरी तरह सदानीरा हो जाए।
भद्रशाीला पर भी काम
इसके अलावा करीब डेढ़ सौ किमी. लंबी भद्रशीला नदी का अभियान शुरू किया है। खुदागंज से कटरा, तिलहर, मदनापुर कांट, ददरौल होकर जलालाबाद में बहगुल व रामगंगा के साथ मिलने वाली यह नदी सूख गई, लेकिन कई जगह भरगूदा नाम से तालाब व नालों के रूप में यह जीवित है। पहले चरण में 35 किमी. की नाप की है।
इस तरह होगा जलसंरक्षण
संजय बताते हैं कि भूमि में आर्गेनिक कार्बन .8 फीसद से ज्यादा होगा तभी वह पानी ग्रहण कर सकेगी। बारिश में एक एकड़ में करीब 70 हजार लीटर पानी आता है, लेकिन 95 फीसद व्यर्थ जाता है। इसलिए गो आधारित प्राकृतिक खेती के जरिए आर्गेनिक कार्बन का प्रतिशत बढ़ाने पर काम कर रहे हैं। करीब दो हजार किसानों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। मदनापुर के बमरौली व तिलहर के रमापुर गांवों में 85 किसानों पूरी तरह से इस तरह से खेती कर रहे हैं। जिससे 1/10 फीसद जल खर्च होगा जबकि शत प्रतिशत जमीन में जाएगा।
यह स्थिति :
- 100 रिचार्ज पिट व वाटर रिचार्ज सिस्टम नगर क्षेत्र में
- 600 नालों पर मनरेगा से कराया गया काम
- 500 तालाबों की मरम्मत व सुंदरीकरण कराया गया
फैक्ट फाइल
- 7 लाख वर्ग मीटर में कराई भैंसी नदी की सफाई
- 49 ग्राम पंचायतों से होकर गुजरा है यह क्षेत्रफल
- 10 हजार स्वयं सेवी मानव दिवस सृजित किए गए
- 8 लाख रुपये सामाजिक रूप से एकत्र करके खर्च किए गए
- 1 हजार मानव दिवस मनरेगा से सृजित किए गए थे इसमें
- 2 ब्लाक बंडा व पुवायां में आता है