बेटियों को सिखा रही आत्मनिर्भरता का हुनर

बेलहर थाना क्षेत्र के गनवरिया में किराए का मकान लेकर जिदगी से जद्दोजहद करने वाली उषा दोनों पैरों से दिव्यांग हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Oct 2020 04:45 PM (IST) Updated:Sun, 25 Oct 2020 04:45 PM (IST)
बेटियों को सिखा रही आत्मनिर्भरता का हुनर
बेटियों को सिखा रही आत्मनिर्भरता का हुनर

संतकबीर नगर : सामान्य परिस्थितियों में समाज के लिए कुछ कर गुजरने का माद्दा तो बहुत से लोगों में है, लेकिन विषम परिस्थितियों में जब कोई कुछ समाज के लिए करता है तो उससे समाज की धारा का अंदाजा लगता है। बेलहर थाना क्षेत्र के गनवरिया में किराए का मकान लेकर जिदगी से जद्दोजहद करने वाली उषा दोनों पैरों से दिव्यांग हैं। बैसाखी के सहारे ही दो कदम चल सकती हैं, लेकिन उनके जज्बे को देखकर हर कोई हैरत में है। उषा के पति टेंपो चलाते हैं तो वह क्षेत्र की बेटियों को निश्शुल्क सिलाई-बुनाई का प्रशिक्षण देती हैं। सुबह घर का कामकाज निपटाने के बाद वह सुबह 11 से एक बजे तक व शाम चार से छह बजे तक बेटियों को प्रशिक्षण देती हैं। उनके यहां लाकडाउन से पूर्व 35 से 40 बच्चियां प्रशिक्षण लेती थीं, लेकिन इस समय में लगभग 20 ही प्रशिक्षण पा रही हैं। बेटियों को हुनरमंद करने का जज्बा इनके अंदर पिछले पांच वर्ष पूर्व आया, जब लोगों की गरीबी देखकर उन्होंने यह बीड़ा उठाया। दिव्यांग होने के बाद भी उषा बेटियों को सिलाई- बुनाई का प्रशिक्षण दे रही हैं। प्रशिक्षण पाकर बेटियां खुद के पैरों पर खड़ी हो रही हैं। दिव्यांग उषा पर है बड़ी जिम्मेदारी उषा की शादी 11 वर्ष पूर्व संतोष निवासी ग्राम मेंहदूपार थाना धर्मसिंहवा के साथ हुआ था। जन्म से ही उषा दोनों पैरों से दिव्यांग है। शादी के बाद उषा के दो बच्चे श्रुति (10) सिद्धांत (4) पैदा हुए। रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हुई तो पति गनवरिया चौराहे पर आकर रहने लगे। यहां पर टेंपो चलाकर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। उषा के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन उनका जज्बा सब पर है। बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने का उठाया बीड़ा उषा का कहना है कि बेटियां पढ़-लिखकर व कला- कौशल सीखकर आत्मनिर्भर बनेंगी तो उनको दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। उनके अंदर हुनर होगा तो वह खुद भी रोजी-रोटी कमा सकेंगी। स्थानीय स्तर पर बेटियों को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाना मकसद है। ताकि वह परिवार की तरक्की में अपना योगदान दे सकें तथा सिर उठाकर जिदगी जी सकें।

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