यहां तो आसमां में सुराख हो गया.
धनघटा क्षेत्र के ग्राम धौरहरा में पवन सिंह के बड़े क्षेत्रफल की भूमि पर कोई फसल नहीं उगती थी। उसर भूमि से कोई लाभ नहीं मिलता था।
संत कबीरनगर : कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। यह कहावत पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में कई स्थानों पर चरितार्थ करके दिखाया है । धनघटा क्षेत्र के ग्राम धौरहरा में पवन सिंह के बड़े क्षेत्रफल की भूमि पर कोई फसल नहीं उगती थी। उसर भूमि से कोई लाभ नहीं मिलता था। उन्होंने बताया कि बस्ती जिले के महसो निवासी अपने रिश्तेदार से उन्होंने जानकारी लेकर यहां दस वर्ष पहले पौधे लगाने शुरू किये। आम, महुआ, सागौन आदि के पौधे लगाकर उनकी सिचाई करने लगे। समय के साथ पौधे पेड़ बन गए और फल के साथ ही कीमती लकड़ियों के पेड़ भी उनकी पूंजी बन गए। लाभ दोहरा मिला। एक तरफ उसर भी भूमि पर हरियाली आ गई तो फलों की बिक्री से हर वर्ष आय और खड़े पेड़ भविष्य की पूंजी बन गए हैं। उनके लाभ को देखकर हरेवा के रामशंकर दूबे, सेमरी निवासी राजाराम यादव, बारीडीहा के सेतूपाल, रामकेश मौर्य, रामचंद्र कसौधन आदि ने भी बड़ी संख्या में आम और सागौन के पौधे लगाए। डाल का पका आम लेना हो तो हरैया आइये सांथा विकास खंड के ग्राम हरैया निवासी अखंड प्रताप सिंह पेशे से अधिवक्ता हैं। पशुओं द्वारा किए जाने वाले नुकसान और खेती से कम लाभ मिलने को लेकर उन्होंने दस वर्ष पूर्व अपने 85 बीघे खेत में आम, सागौन, जामुन और आंवले के पौधे लगाने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि पहले तो परिवार के लोग इसे गलत निर्णय बता रहे थे। अब उनकी बाग पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। तीन चार वर्ष से आम का अच्छा उत्पादन भी हो रहा है। बौर लगने में समय ही वह बाग को पट्टे पर दे देते हैं। क्षेत्र में लोग चर्चा करते हैं कि डाल पर पका आम लेना हो तो हरैया की बाग में पहुंचें। इससे उन्हें हर वर्ष परंपरागत खेती से अधिक आय होती है। अखंड प्रताप सिंह का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण और आय, दोनों को लेकर उनकी बाग बेहतर परिणाम दे रहा है।