मित्रता पारस्परिक लगाव और विचारों का अटूट समन्वय

मित्रता या दोस्ती दो या अधिक व्यक्तियों के बीच पारस्परिक लगाव का संबंध है। यह संगठन की तुलना में अधिक सशक्त बंधन है। कुछ विशेषताएं हर प्रकार की मित्रता में मिलती हैं जैसे कि ईमानदारी परोपकार करुणा क्षमा पारस्परिक समझ भरोसा सुखद साथ गलती करने में मित्र से निर्भयता आदि।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 23 Sep 2020 10:40 PM (IST) Updated:Thu, 24 Sep 2020 05:10 AM (IST)
मित्रता पारस्परिक लगाव और विचारों का अटूट समन्वय
मित्रता पारस्परिक लगाव और विचारों का अटूट समन्वय

सहारनपुर, जेएनएन। मित्रता या दोस्ती दो या अधिक व्यक्तियों के बीच पारस्परिक लगाव का संबंध है। यह संगठन की तुलना में अधिक सशक्त बंधन है। कुछ विशेषताएं हर प्रकार की मित्रता में मिलती हैं, जैसे कि ईमानदारी, परोपकार, करुणा, क्षमा, पारस्परिक समझ, भरोसा, सुखद साथ, गलती करने में मित्र से निर्भयता आदि। यद्यपि कौन से लोग मित्र बन सकते हैं, इसकी कोई व्यवहारिक सीमा नहीं है।

अच्छी मित्रता गुणों का समूह है। एक सच्चे मित्र के पांच आवश्यक लक्षण या अनुशासन होते हैं। इनके द्वारा हम भीड़ में भी अच्छे व सच्चे मित्र की पहचान कर सकते हैं। पहला, हर दम साथ। वह आपके जीवन में सदैव साथ रहेगा। सुख हो या दुख, वह आपको कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। दूसरा, सहायता। एक अच्छा व सच्चा मित्र सदैव अपने मित्र की सहायता को तत्पर रहेगा। यदि कभी कोई सहायता उसके बस की नहीं हो फिर भी वह उस सहायता के लिए अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा देगा। वह हर हाल में सहायता करके ही दम लेगा। तीसरा लक्षण, वफादारी। अच्छा व सच्चा मित्र वही है जो वफादार हो। वफादारी जिसमें कूट-कूट कर भरी हो। चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हो जाएं वह कभी भी बेवफाई न करे और मित्र का कोई राज औरों को न बताए। मित्र की किसी कमजोरी को जगजाहिर न करे। मतलब कि वह पूरा-पूरा भरोसेमंद हो। वफादार हो वफादारी वाला हो। चौथा लक्षण/अनुशासन, सम्मान। वह हर हाल में आपका सम्मान करे। अमीरी, गरीबी, जात, धर्म, ऊंच-नीच, शिक्षा-दीक्षा, भाषा, योग्यता आदि हर पहलू में कमी-बेशी की परवाह न करते हुए जो हर हाल में अपने मित्र का सम्मान करे। उसके आत्म सम्मान को कदापि ठेस न पहुंचाए। उसे पूरे सम्मान के साथ बराबरी का दर्जा दे वही सच्चा और अच्छा मित्र है। पांचवां लक्षण/अनुशासन, समानुभूति। एक सच्चा व अच्छा मित्र वही है जो अपने मित्र के प्रति न सिर्फ सहानुभूति भरा हो बल्कि समानुभूति भरा हो। वह अच्छे कार्यो में पूरा-पूरा सहयोग दे तो बुरे कार्यो से रोके भी। मित्रता में अच्छे-बुरे की तमीज और बुराई से रोकने की प्रवृत्ति भी बहुत आवश्यक अनुशासन है। मित्र का परिपक्व होना भी अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए कहते हैं कि एक नादान मित्र से बेहतर एक जिम्मेदार दुश्मन अच्छा है। इसीलिए मित्रता में मित्र की परिपक्वता व जिम्मेदारी बहुत ही अहम होती है। इसके साथ ही मित्र दयावान और गलतियों को क्षमा करने की प्रवृत्ति वाला विशाल हृदय का व्यक्तित्व हो। अत: इससे स्पष्ट है कि साथ, सहायता, वफादारी, सम्मान और समानुभूति। इन पांच लक्षणों या अनुशासन की कसौटी पर जो मित्रता और मित्र खरे उतरें वही मित्रता मित्रता है और वही मित्र मित्र है। यही मित्रता का अनुशासन है।

-चंद्र किशोर सिंह, प्रधानाचार्य

स्टार पेपर मिल्स सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज सहारनपुर।

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