मंदिरों में श्रद्धालु स्वयं ही बरत रहे एहतियात

सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी जाने वाले श्रद्धालुओं के लिये मान्यता के अनुसार प्रथम पूजा के लिये प्रसिद्ध बाबा भूरादेव मंदिर के कपाट मंगलवार की शाम खुल गये थे और यहां भी सरकार की गाइडलाइन के अनुसार भक्तों ने दर्शन करने शुरू कर दिये थे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 11 Jun 2020 10:21 PM (IST) Updated:Thu, 11 Jun 2020 10:21 PM (IST)
मंदिरों में श्रद्धालु स्वयं ही बरत रहे एहतियात
मंदिरों में श्रद्धालु स्वयं ही बरत रहे एहतियात

सहारनपुर जेएनएन। सिद्धपीठ श्री शाकंभरी देवी जाने वाले श्रद्धालुओं के लिये मान्यता के अनुसार प्रथम पूजा के लिये प्रसिद्ध बाबा भूरादेव मंदिर के कपाट मंगलवार की शाम खुल गये थे और यहां भी सरकार की गाइडलाइन के अनुसार भक्तों ने दर्शन करने शुरू कर दिये थे। सिद्धपीठ पर श्रद्धालु पहुंच रहे हैं और उन्हें प्रबंधन सरकार द्वारा निर्धारित की गयी गाइड लाइन के अनुसार दर्शन करा रहे हैं। शाकंभरी में तो सोमवार से दर्शन शुरू हो गये थे।

मुख्य तौर पर सिद्धपीठ ही सबसे बड़ा आस्था का केन्द्र है। शाकंभरी में तो व्यवस्थापक राणा परिवार द्वारा रविवार को ही तमाम व्यवस्थाएं पूरी कर ली गयी थी। एसडीएम दीप्ति देव यादव व सीओ विजयपाल सिंह ने भी निरीक्षण के बाद अनुमति दे दी थी। लेकिन भूरादेव पर यह व्यवस्थाएं एक दिन देरी पूरी होने के कारण अनुमति एक दिन बाद मिली। यहां के प्रधान पुजारी रोशन जोशी ने बताया कि मंदिर परिसर को हर दिन भोर में आरती से पहले सैनिटाइज किया जाता है। आरती के बाद दर्शन शुरू हो जाते हैं। दर्शनार्थियों को सबसे पहले मंदिर से काफी पहले बनाये गये काउंटर से टोकन दिया जाता है और थर्मल स्क्रीनिग भी की जाती है। इसके बाद मंदिर के मुख्यद्वार पर फिर से थर्मल स्क्रीनिग करने के बाद ही श्रद्धालु को मंदिर परिसर में प्रवेश मिलता है। यहां एक बार में पांच श्रद्धालु ही शारीरिक दूरी के नियम का पालन करते हुये बाबा भूरादेव के दर्शन करते हैं। मंदिर में प्रसाद न तो अर्पित किया जा रहा है और न ही वितरित किया जा रहा है। इन पांच श्रद्धालुओं के बाहर आ जाने के बाद ही दूसरे पांच को प्रवेश मिलता है। उन्होंने यह भी बताया कि श्रद्धालु स्वयं ही एहतियात बरत रहे हैं। सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करते हुये 10 वर्ष से कम व 60 साल से अधिक के आयु के श्रद्धालु यहां पहुंच ही नहीं रहे हैं। यदि कोई आता भी है तो वह मंदिर में स्वयं ही प्रवेश नहीं करता है।

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