सदैव लोकव्यापी रहा कन्हैया लाल प्रभाकर के साहित्य का ²ष्टिकोण

लेखक तो वही है जिसकी विचारधारा में जीवन का स्पंदन हो चिन्तन की ²ष्टि लोकव्यापी हो जो दूसरे के दुख दर्द को समझते हुए सब अच्छा करने का अभिलाषी रखता हो। चितन की इस भावभूमि में कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का लेखकीय व्यक्तित्व रचा गया है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 08 May 2021 07:25 PM (IST) Updated:Sat, 08 May 2021 07:25 PM (IST)
सदैव लोकव्यापी रहा कन्हैया लाल प्रभाकर के साहित्य का ²ष्टिकोण
सदैव लोकव्यापी रहा कन्हैया लाल प्रभाकर के साहित्य का ²ष्टिकोण

सहारनपुर, जेएनएन। लेखक तो वही है, जिसकी विचारधारा में जीवन का स्पंदन हो, चिन्तन की ²ष्टि लोकव्यापी हो, जो दूसरे के दुख दर्द को समझते हुए सब अच्छा करने का अभिलाषी रखता हो। चितन की इस भावभूमि में कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का लेखकीय व्यक्तित्व रचा गया है।

कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर का जन्म सहारनपुर जनपद के देवबंद कस्बे में 29 मई 1906 को हुआ था। उनका कथन था कि मेरे लिये साहित्य सृजन जीवन का अंग है। इसलिए आकाश की कल्पनाओं में नहीं उलझकर जनजीवन में ही सत्य की खोज उनके साहित्य और सृजन की आत्मा बन बैठी। एक रक्त, एक शरीर, एक प्राण मानव मानव एक समान का यह ब्रह्मसूत्र उन्होंने अपने पिता रमा दत मिश्र से सीखा था, जिन्होंने उस युग में परिवार के बच्चों एवं घर में सफाई करने वाली सफाईकर्मी के बच्चों के भेदभाव को दरकिनार कर नया आदर्श स्थापित किया था।

पिता से प्राप्त इन संस्कारों से प्रेरित कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर का मंतव्य यही रहा कि मनुष्य मनुष्य के बीच का अंतर समाप्त हो ओर समानता व एकता की भावधारा मे समूचा समाज स्वयं को सही अथरें मे मनुष्य कहला सके।

भारत के राष्ट्रपति द्वारा पदम पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, एवं मेरठ विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि सहित अनेक राज्य सरकारों एवं सस्थानों द्वारा सम्मानित तथा नया जीवन, ज्ञानोदय तथा विकास आदि कई पत्रो का सम्पादन करने वाले जुझारू और जाने माने कलमकार कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने अपने विराट चितन से विशिष्ट शैली मे जो कृतिया हिन्दी साहित्य को भेंट की, उनमे जिदगी मुस्कराई, माटी हो गई सोना, बाजे पायलिया के घुंघरू, क्षण बोले कण मुस्काए, महके आंगन चहके द्रार , दीप जले शंख बजे, जिदगी लहलहाई, कारवां आगे बढे, तपती पगडंडियो पर पदयात्रा, एवं अनुशासन की राह में उनकी बहुचर्चित कृतियां है।

यह कैसा अदभूत संयोग है कि आना ओर जाना दोनो मई मास मे तारीख के दो अंको की अदल बदल भर है। 9 मई 1995 को वे पंचतत्व मे विलिन हो गये थे किन्तु सच तो यह है कि वे आज भी अपनी सर्जना, चितन के माध्यम से जनजन के मन के बीच मौजूद है। बार बार आवाज लगाते हुए सुनाई देते है।

कोरोना व लक्षण के चलते दो की मौत

अंबेहटा: नगर में शनिवार को कोरोना व अन्य लक्षण के चलते दो लोगों की मौत हो गई है। शवों का अंतिम संस्कार कोरोना गाइडलाइन के अनुसार किया गया।

बावन वर्षीय नवीन मित्तल निवासी मोहल्ला साबूतराय की तबीयत एक सप्ताह से थी। गंभीर होने पर शुक्रवार को उसे पिलखनी स्थित मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया, जहां शनिवार को उसकी मौत हो गई है। बता दें कि नवीन ने कोविड की पहली डोज ले रखी थी।

उधर, मोहल्ला गुजरान निवासी आशीष जैन की भी शनिवार सुबह बुखार से मौत हो गई। आशीष के भाई रिकू जैन ने बताया कि आशीष करीब 20 दिन से अपने परिवार के साथ साहिबाबाद (गाजियाबाद) में रह रहा था। आशीष को कई दिन से बुखार था, जिसका उपचार निजी चिकित्सक के यहां चल रहा था। शनिवार को तबियत ज्यादा बिगड़ गई। जिससे उसकी मौत हो गई। दोनों शवों का अंतिम संस्कार कोरोना गाइडलाइन के अनुसार कस्बे के श्मशान घाट मे किया गया है।

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