तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की मदद को तत्पर अतिया

सहारनपुर :मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाली सहारनपुर की अतिया साबरी न

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jan 2019 09:38 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jan 2019 09:38 PM (IST)
तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की मदद को तत्पर अतिया
तीन तलाक पीड़ित महिलाओं की मदद को तत्पर अतिया

सहारनपुर :मुस्लिम समाज में तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देने वाली सहारनपुर की अतिया साबरी ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। दहेज की मांग करने वाले ससुरालियों को न केवल कानून का सहारा लेकर जेल भिजवाया, बल्कि समाज में जन चेतना जागृत करने में सबसे आगे रहीं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक अवैध घोषित किये जाने के बाद देश भर में यह मामला सुर्खियों में रहा था। केंद्र सरकार के अध्यादेश जारी किए जाने के बाद लोकसभा में तीन तलाक का बिल पारित हो चुका है, जबकि राज्यसभा में सरकार का पर्याप्त बहुमत न होने के कारण अभी भी लटका हुआ है।

मोहल्ला आली तेली वाला चौक निवासी मजहर हसन की पुत्री अतिया साबरी का निकाह 25 मार्च 2012 को हरिद्वार के सुलतानपुर निवासी वाजिद अली से हुआ था। दो बेटियां होने पर पति ने शादी के पौने दो साल बाद ही उन्हें तलाक दे दिया था। उन्होंने दस रुपये के स्टांप पर तलाकनामा लिखकर दारुल उलूम देवबंद से फतवा लिया और उसकी कापी अतिया के भाई मोहम्मद रिजवान के कार्यालय में डलवा दी थी। इस घटनाक्रम के बाद अतिया ने हार नहीं मानी। पूरी हिम्मत के साथ मुकाबले का संकल्प लिया। बकौल अतिया ससुराल वालों ने जान से मारने के लिए जहर देने का प्रयास भी किया था। इसमें दर्ज हुए मुकदमें पति और सास-ससुर जेल भी गए। अतिया के साथ हुए इस पूरे घटनाक्रम को लेकर दैनिक जागरण ने उनकी ¨जदगी में आए बदलाव के बारे में बातचीत की।

तलाकनामा मिलने पर आपका पहला रास्ता क्या रहा?

तलाकनामे की कापी मिलने पर मैने सोचा कि जो लोग फोन मोबाइल, इंटरनेट व चिट्ठी आदि के द्वारा या आमने-सामने तीन तलाक बोलकर महिलाओं को धोखा दे रहे हैं और इस तरह के तलाक को सही मान रहे हैं। सही होने के फतवे भी जारी करते हैं, ऐसे लोग इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।

आपके अनुसार आखिर तलाक की सही व्यवस्था क्या थी?

इस्लाम में कहीं पर भी एक बार में तीन तलाक देना नहीं बताया गया है। कुरान में तीन महीने में एक-एक महीने पर बोला गया तीन तलाक मान्य है। वह भी उस सूरत में जब पति-पत्नी में समझौते की कोई गुंजाइश न रही हो। पति ने पत्नी व उसके बच्चों के खर्च के अलावा मय शादी के खर्च को अदा कर दिया हो। पत्नी का शरीयतन व कानूनन भी संपत्ति में हक बैठता है। उसे देकर व फिर पत्नी की सहमति होने पर तलाक मान्य होगा। पत्नी को सालों अपने हक के लिए कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे।

याचिका में किसे-किसे पार्टी बनाया था?

अपने हक के लिए दारुल उलूम देवबंद, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय, कानून मंत्रालय, महिला सशक्तिकरण व पति को पार्टी बनाकर नवंबर 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। तीन तलाक को एक ही समय में देने को असंवैधानिक घोषित किया गया था। मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग इस फैसले से खुश है।

फैसले के बाद आपको क्या दबाव झेलने पड़ें?

मुझे समाज के कुछ असामाजिक तत्वों का सामना करना पड़ा। उनका कहना था कि तुम शरीयत के खिलाफ लड़ रही हो, जो ठीक नहीं है। ससुराल वालों ने फंसाने के लिए मेरा एक फर्जी बैंक एकाउंट भी खुलवाया ताकि मुझे जेल भिजवा सकें। भाई रिजवान को फंसाने के लिए भी ससुरालियों ने पुलिस को तरह-तरह के गुमराह किया।

आपने लगातार हो रहे उत्पीड़न का कैसे जवाब दिया?

ससुरालियों द्वारा मेरे व मेरे भाईयों के खिलाफ फर्जी मुकदमें दर्ज कराकर डराया व धमकाया गया, लेकिन मैने उनका ²ढ़ता से सामना किया। उनसे डरी नहीं और न ही पीछे हटी। बल्कि तीन तलाक के विरोध का मिशन पूरा किया। घर पर रहकर अपनी दोनो बेटियों को पढ़ा रही हूं। भविष्य में लोगों को जागरुक करती रहूंगी। तीन तलाक से जो महिलाएं पीड़ित हैं, उनकी हर संभव मदद करुंगी।

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