फटे पुराने कपड़े से जूते बना रहे विश्वनाथ

रामपुर हुनर हाट में पश्चिमी बंगाल से आए विश्वनाथ दास का हुनर वाकई कमाल है। वह फटे पुराने कपड़े से नए जूते तैयार कर रहे हैं। इनके बनाए जूते बेहद खूबसूरत हैं और पहनने में भी सुविधाजनक। पसीना सोख लेते हैं और ऐड़ी के दर्द में राहत पहुंचाते हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Oct 2021 11:48 PM (IST) Updated:Thu, 21 Oct 2021 11:48 PM (IST)
फटे पुराने कपड़े से जूते बना रहे विश्वनाथ
फटे पुराने कपड़े से जूते बना रहे विश्वनाथ

रामपुर: हुनर हाट में पश्चिमी बंगाल से आए विश्वनाथ दास का हुनर वाकई कमाल है। वह फटे पुराने कपड़े से नए जूते तैयार कर रहे हैं। इनके बनाए जूते बेहद खूबसूरत हैं और पहनने में भी सुविधाजनक। पसीना सोख लेते हैं और ऐड़ी के दर्द में राहत पहुंचाते हैं। विश्वनाथ पिछले 17 साल से जूट से जूते बनाते रहे हैं, लेकिन पिछले साल से कपड़े से जूते तैयार कर रहे हैं।

इस काम में इनका पूरा परिवार लगा है। रोज ढाई सौ जोड़ी जूता बनाते हैं। बताते हैं कि पिछले साल कोरोना महामारी के चलते सरकार ने देशभर में लाक डाउन लगाया तो जूट मिलें भी बंद हो गईं। तब उन्हे जूट मिलना बंद हो गई और उनका काम भी चौपट हो गया। इसी दौरान उनके दिमाग में फटे पुराने कपड़े से जूते तैयार करने के आइडिया आया। उन्होंने इसे अमली जामा पहनाने के लिए कपड़े से जूते बनाने शुरू कर दिए। पहले तो कुछ दिक्कत आई, लेकिन अब वह बेहद खूबसूरत जूते बनाते हैं और मात्र दो सौ रुपये में बेचते हैं। इनके बनाए जूते खरीदने के लिए स्टाल पर महिलाओं की भीड़ लगी रहती है। उनका कहना है कि हम चीन से मुकाबले के लिए तैयार हैं, इसी लिए सस्ता जूता बेच रहे हैं। कपड़े से जूता बनाने में उनका पूरा परिवार लगा है। पत्नी रीता दास भी उनके साथ आई हैं। वह कहते हैं कि अब तक दो सौ युवाओं को कपड़े से जूता बनाना सिखा चुके हैं। रामपुर के युवाओं को भी इसे सीखना चाहिए। अगर कोई चाहे तो वह उसे सिखा सकते हैं। मात्र दस मिनट में ईको फेंडली स्लिपर तैयार कर देते हैं। जूते की मजबूती के लिए नीचे रबड़ की सोल भी लगाते हैं। परिवार में छह लोग हैं जो, प्रतिदिन दो सौ से ज्यादा जोड़े जूते तैयार करते हैं। पर्यावरण संरक्षण भी विश्वनाथ कहते हैं कि कपड़े का जूता पहनने के कई फायदे हैं। इससे ऐड़ी में दर्द नहीं होता। पसीना भी सुखा लेता है। साथ ही इससे पर्यावरण संरक्षण भी होता है। लोग फटा पुराना कपड़ा जहां तहां फेंक देते हैं, जिससे गंदी बढ़ती है, जो पर्यावरण के लिए खतरा है। वह फटे पुराने कपड़े को 60 रुपये किलो खरीदते हैं और फिर उसका सही इस्तेमाल करते हैं। इससे पर्यावरण संरक्षण हो रहा है। हुनर हाट से उनके हुनर को और पहचान मिली है। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का सराहनीय कार्य है।

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