विशेष-आधी आबादी ने ठाना, अन्नदाता को खुशहाल बनाना
महिलाओं ने घर की दहलीज से बाहर निकल लिखी सफलता की इबारत
शंकर सिंह, राही : परिवार की आर्थिक तंगी। दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल हो पाता था। ऐसे में आधी आबादी ने घर के साथ ही बाहर भी हाथ बंटाने का मन बनाया। स्वावलंबन को हथियार बनाते हुए एकजुट हुईं। स्वयं सहायता समूह बनाकर छोटी-छोटी बचत से कुछ रुपये जमा किए। इसके बाद शुरू किया जैविक खाद बनाने का काम। किसानों को रासायनिक खाद से नुकसान और जैविक खाद से फायदे गिनाए। इसमें सफलता मिली तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद उन किसानों को मदद करने की ठानी, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। उनके लिए बीज बैंक खोला। उन्हें उन्नतिशील बीज उपलब्ध कराकर मदद की। बदले में पैदावार बढ़ी तो बीज के बदले अनाज लिया। देखते ही देखते ये महिलाएं किसानों की हमदर्द बन गईं।
इनसेट
अनीता और नीरज की पहल, एकजुट हुईं महिलाएं
अनीता और नीरज ने इसकी पहल की। शुरुआती दौर में दिक्कतें आईं। 11 महिलाओं का एक स्वयं सहायता समूह तैयार किया। नाम रखा जय अंबे स्वयं सहायता समूह। इसके बाद 50-50 रुपये की बचत शुरू की। इस छोटी सी बचत का सारा धन बैंक में जमा किया। इसके तहत बैंक से एक लाख का कर्ज मिल गया। महिलाओं ने छोटे-छोटे काम शुरू किए। इसके बाद रोजगार तो चला ही उनकी रेंग रही अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ लिया।
बीज बैंक में जमा 12 क्विटल धान और गेहूं
बीज बैंक में 12 क्विटल धान और गेहूं के अलग-अलग बीज उपलब्ध हैं। यह देख आसपास के गांवों में भी महिलाएं समूह बनाकर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं।
रंग लाई मेहनत, जीवन में आई खुशहाली
महिलाओं की मेहनत का नतीजा है कि उनके जीवन में खुशहाली आ गई। नीरज कहती हैं कि घर पर ही गोबर और घास-फूस से जैविक खाद बना रहे हैं। कम कीमत होने के कारण खरीदार भी मिल जाते हैं। पहले थोड़ी, बहुत दिक्कत आई, लेकिन अब सबकुछ बेहतर चल रहा है।