बच्चे की उखड़ती सांसें देख ''''प्रतिभा'''' ने पहली बार किया रक्तदान
- जीवन रक्षक की महत्ता समझ अब हर तीसरे माह कर रहीं महादान - ब्लड बैंक में टॉप-5 डोनर ऐसे जो बिना बुलाए निभा रहे अपना धर्म
रायबरेली : बात वर्ष 2009-10 की है। जिला अस्पताल में मेरे पति का इलाज चल रहा था। सामने वाले बेड पर एक बच्चा भर्ती था, जिसे रक्त की जरूरत थी। मैंने उसे ब्लड दिया, लेकिन अपने घरवालों से ये बात छिपाई, इस डर से कहीं डांट न पड़ जाए। ब्लड डोनेट करने के बाद जब मैं बच्चों के परिवारवालों से मिली तो उन्होंने खूब आशीर्वाद दिया। मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। इसके बाद से मैं लगातार हर तीसरे महीने मैं खुद ही ब्लड बैंक जाकर रक्तदान कर रही हूं। ये अनुभव साझा किया है सत्यनगर की प्रतिभा मिश्रा ने, जोकि पेशे से शिक्षिका हैं और अब तक 40 बार ब्लड डोनेट कर चुकी हैं।
विश्व रक्तदान दिवस के अवसर पर हम आपको ऐसे ही लोगों के बारे में बताएंगे, जो निस्वार्थ भाव से अपना सेवा धर्म निभा रहे हैं। डलमऊ के राम मिलन सिंह भी उनमें से एक हैं। 1998 में वह जिला अस्पताल किसी मरीज को देखने आए थे। ब्लड बैंक में उन्हें भीड़ लगी दिखी। जीवन रक्षक के लिए लोग मिन्नतें कर रहे थे। तभी से उन्होंने रक्तदान करने की ठान ली और अब तक 41 बार यह पुण्य कार्य कर चुके हैं। उनके समझाने पर गांव के 15 से 20 लोग भी समय-समय पर ब्लड डोनेट कर रहे हैं। अमावां ब्लॉक के गढी खास निवासी शिव शरन सिंह हरचंदपुर के पूरे मौहारी पूर्व माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक हैं। वर्ष 1998 में इनके भाई की तबीयत खराब हो गई। खून देने की बात आई तो सब नाते रिश्तेदार किनारे हो गए। उन्होंने रक्तदान किया। ये बात जब उनकी प्रधानाध्यापिका कांति देवी को पता चली तो वह भी ब्लड डोनेट करने आ गई। तब से शिव शरन भी लगातार रक्तदान करते चले आ रहे हैं।
ग्रुप में ब्लड डोनेशन
एचडीएफसी बैंक के जतिन मिश्रा और वशी की अगुवाई में सहकर्मी प्रति वर्ष आठ नवंबर को रक्तदान करते हैं। इसी तरह एफजीआइईटी के असिस्टेंट प्रोफेसर मनीष रेगुलर डोनर हैं और साल में दो-तीन कैंप भी कराते हैं।
नाम - निवास- पेशा- रक्तदान
शिव शरन सिंह - अमावां - शिक्षक - 45राम प्रकाश मौर्या - दोहरी - कृषक - 42
राम मिलन सिंह - डलमऊ - किसान - 41
राघवेंद्र सिंह - रतापुर - व्यवसायी - 39
प्रतिभा मिश्रा - सत्य नगर - शिक्षक - 40