मोमबत्ती और मोबाइल की रोशनी के भरोसे प्रसूताएं
- सीएचसी में बिजली जाने पर नहीं चलाया जाता जनरेटर प्रसाधन में पानी का संकट
रायबरेली: सूरज ढलने के बाद अगर लाइट गई तो अस्पताल में रोशनी के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। बारिश में बिजली की आवाजाही कुछ ज्यादा ही बढ़ गई, ऐसे में यहां भर्ती मरीज मोमबत्ती और टार्च जलाकर किसी तरह रहते हैं। सबसे ज्यादा परेशानी गर्भवती और प्रसूताओं को हो रही है। जनरेटर होने के बावजूद इसे चलाया नहीं जा रहा है। शुक्रवार की देर शाम दैनिक जागरण की टीम ने अस्पताल की पड़ताल की तो हकीकत सामने आ गई। पेश है रिपोर्ट.. शाम 6.40 बजे सीएचसी लालगंज के महिला वार्ड के दोनों कमरों में अंधेरा पसरा था। प्रसूताएं व उनके तीमारदार घुप्प अंधेरे में बेडों पर बैठे थे। प्रसव कराने के लिए अस्पताल पहुंची कुछ महिलाएं अपने तीमारदारों के साथ गैलरी में जमीन पर लेटी थी। कोरिहरा गांव की आरती, पलिया विरसिंहपुर की गुड़िया, सातनपुर गांव की रजिया बानों मोबाइल की टार्च जलाकर उसकी रोशनी में अपने तीमारदारों से बात कर रही थी। महाखेड़ा की रंजना ने मोमबत्ती जला रखी थी। कई प्रसूताएं बच्चों को गोद में लिए अंधेरे में लेटी थी। उन्होंने बताया कि लाइट चले जाने के बाद वार्ड में रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। उन्हें इसी प्रकार अंधेरे में रहना पड़ता है। रात 7.15 बजे मेरुई गांव की शकुंतला शौचालय के बाहर परेशान खड़ी मिलीं। बताया कि वह अपनी बहू की डिलीवरी कराने के लिए आई हैं। शौचालय में पानी तक नहीं है।
सिर्फ नाम का एफआरयू
लालगंज सीएचसी को फर्स्ट रेफरल यूनिट का दर्जा मिला है। मतलब यहां जिला अस्पताल की तरह बेहतर उपचार की व्यवस्था होनी चाहिए। हकीकत तो ये है कि यहां से मरीज सिर्फ रेफर किए जाते हैं।
.. तो कहां जाता है 13 हजार का डीजल
सीएचसी अधीक्षक डा. राजीव गौतम का कहना है कि डीजल के लिए बजट ही नहीं मिलता। अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं। एक बार जनरेटर स्टार्ट कराने में चार से पांच लीटर डीजल लग जाता है। इनवर्टर से वार्डों में लाइट जलाई जाती है। वार्डों में इनवर्टर से कनेक्शन की बात तो पहले ही गलत साबित हो गई। डीजल के बाबत सीएमओ डा. वीरेंद्र सिंह ने बात की गई। उन्होंने बताया कि प्रति माह 13 हजार रुपये का बजट सीएचसी को दिया जाता है। लालगंज में जनरेटर क्यों नहीं चलाया जा रहा है, इसकी जांच कराई जाएगी।