तकनीक में दक्ष तो कोई हुनरमंद, तलाश रहे नई राह
विषम परिस्थितियों से जूझ रहे लॉकडाउन में गैर प्रांतों से लौटे प्रवासी मनमुताबिक काम नहीं मिलने से गहराने लगा परिवार चलाने का संकट
रायबरेली : बेरोजगारी का एक मात्र हल मनरेगा नहीं। लॉकडाउन में भले ही इस योजना ने बहुतों का काम दिया होगा, लेकिन तकनीकि रूप से दक्ष और छोटा-मोटा अपना व्यवसाय करने वाले अब भी बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं। प्रवासी अब नई राह तलाशने लगे हैं। गांव से बाहर कस्बों में जाकर काम को लेकर जुगत भिड़ा रहे हैं।
कोई मशीनिस्ट तो कोई पेंटिग या राजगिरी का काम करता है। जीवन पर संकट आया तो गांव लौट जरूर आए। लेकिन यहां भी चुनौतियां कम नहीं है। अब तक पूरे तहसील क्षेत्र करीब साढ़े आठ हजार है। इसमें कोई बड़ी-बड़ी फैक्ट्री में मशीन चलाता था तो किसी की रोजी-रोटी निजी सुरक्षा गार्ड का काम करके चल रही थी। वापसी आने के बाद उन्हें सिर्फ मनरेगा का ही एक विकल्प दिखाया जा रहा है। जबकि, आमदनी भी उतनी नहीं कि घर की गाड़ी चल सके। प्रशासन और इलाके के जनप्रतिनिधि समस्या दूर करने का दंभ जरूर भर रहे हैं, लेकिन हकीकत से कोसों दूर हैं।
इनसेट
नहीं मिला हुनर के मुताबिक काम
आलमपुर गांव के विनोद कुमार अपने भाई के साथ दिल्ली स्थित एक कंपनी में जनरेटर बनाने का काम करता था। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से 27 मई को दोनों घर लौट आए हैं। उनके हुनर के मुताबिक काम न मिलने से फिलहाल दोनों बेरोजगार ही हैं। इसी तरह सूदनखेड़ा मजरे आलमपुर निवासी दिनेश कुमार लुधियाना में फेरी लगाकर कपड़े बेचता था। ठीकठाक आमदनी हो जाती थी। इसलिए पत्नी सविता के साथ बेटे को भी ले गया था। अब पूरा परिवार वापस गांव आ गया है। काम तो मिल रहा है, लेकिन मनरेगा में। दिनेश इस सोच में पड़ गया है कि फावड़ा पकड़े तो कैसे। सूची बनने तक समिति रह गई व्यवस्था
प्रवासियों को बाहर न जाना पड़े ऐसे में सरकार की ओर से तीन श्रेणियों में चिन्हित करने के निर्देश दिए गए हैं। इसमें कुशल, अकुशल और श्रमिक वर्ग दिया गया है। जिले के अफसर भी निर्देश पर सूचीबद्ध भी किया जा रहा है। ऐसे में उनके सामने मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं।