धूमधाम से मनायी जायेगी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राणा बेनी माधव बख्श की जयंती

णा बेनी माधव बख्श सिंह की 214 वीं जयंती पर रायबरेली के फीरोज गांधी कालेज सभागार में भाव समर्पण कार्यक्रम का आयोजन 24 अगस्त को धूमधाम के साथ मनाया जायेगा।

By Ashish MishraEdited By: Publish:Wed, 22 Aug 2018 03:16 PM (IST) Updated:Thu, 23 Aug 2018 08:14 AM (IST)
धूमधाम से मनायी जायेगी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राणा बेनी माधव बख्श की जयंती
धूमधाम से मनायी जायेगी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राणा बेनी माधव बख्श की जयंती

लखनऊ (जेएनएन)। पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 के अमर नायक राणा बेनी माधव बख्श सिंह की 214 वीं जयंती पर रायबरेली के फीरोज गांधी कालेज सभागार में भाव समर्पण कार्यक्रम का आयोजन 24 अगस्त को किया जायेगा। समारोह के मुख्य अतिथि परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर बाना सिंह और मुख्य वक्ता पूर्व आईपीएस अधिकारी शैलेंद्र प्रताप सिंह रहेंगे।

इसी दिन शाम को फिरोज गांधी कालेज के इंदिरा गांधी सभागार में काव्यांजलि का आयोजन होगा। जिसमें मशहूर कवि और शायर शिरकत करेंगे। समारोह समिति के अध्यक्ष इंद्रेश विक्रम सिंह ने बताया कि यह कार्यक्रम लगातार कई सालों से होता चला आ रहा है। इसका उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम सेनामी बेनी माधव को याद करना और नई पीढ़ी को उनके बलिदान त्याग और समर्पण के बारे में बताना है।

आचार्य रजनीकांत वर्मा ने राना बेनी माधव की वीरता का बखान करते हुये लिखा है कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांति के तीनों केंद्र दिल्ली कानपुर और लखनऊ की हार के बाद महारानी विक्टोरिया ने ईस्ट इंडिया कंपनी के साम्राज्य को इंग्लैंड की पार्लियामेंट के अधीन कर लिया था लेकिन इसके बाद भी बैसवारा चीफ राना बेनी माधव सिंह ने लॉर्ड कैनिंग के समक्ष हथियार नहीं डाले।

बेगम हजरत महल द्वारा राजा जंग बहादुर की शरण में चले जाने के बाद भी राणा बेनी माधव ने नेपाल की तराई तक अंग्रेजों से युद्ध किया। यह उनके अदम्य साहस प्रचंड बलिदान एवं उत्कृष्ट सैन्य कौशल का परिणाम रहा कि 1857 की क्रांति के तात्या टोपे एवं राणा बेनीमाधव मात्र दो ऐसे सेनानी थे जिन्हें वास्तविक स्वतंत्रता सेनानी कहा जा सकता है।

वहीं एक अन्य लेखक ने लिखा है कि प्रथम स्वाधीनता संग्राम के महान योद्धा राना बेनी माधव बक्स सिंह इसी बैसवारा के माटी के सपूत थे जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से डटकर लोहा लिया और अंत तक हार नहीं मानी। अवध का जनमानस आज भी राना के शौर्य को अपनी सांस में समेटे है। ''अवध मा राना भयो मर्दाना'' तथा ''वीरता अकेले संग राना के चली गई' जैसे लोकगीत और छंद पूरी ताजगी और उर्जा के साथ यहां की आबोहवा में घुले हैं 

chat bot
आपका साथी