मैं रायबरेली..दर्द से लड़पती, इलाज की दरकार

मैं रायबरेली हूं। मेरे ही आंचल की छांव में राजनीति का

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Apr 2021 11:52 PM (IST) Updated:Thu, 22 Apr 2021 11:52 PM (IST)
मैं रायबरेली..दर्द से लड़पती, इलाज की दरकार
मैं रायबरेली..दर्द से लड़पती, इलाज की दरकार

रायबरेली : मैं रायबरेली हूं। मेरे ही आंचल की छांव में राजनीति का ककहरा सीखने वाले अब वट वृक्ष बन चुके हैं। पद, प्रतिष्ठा और अहम मुकाम हासिल कर लिया, लेकिन मेरे लाखों लोग ऐसे में हैं जो कोरोना महामारी की वेदना से तड़प रहे। महामारी का ग्रहण ऐसा छाया की जीवन के अस्तित्व पर ही संकट आ गया। बचाव के उपाय बौने हैं। कारण यहां एम्स है, इलाज नहीं। कोविड हॉस्पिटल है, वेंटिलेटर नहीं। जिला अस्पताल में डॉक्टर और जरूरी संसाधन भी नहीं। इस कारण राजनीति की उर्वरा भूमि पर लोग बेमौत मर रहे। माननीयों का आलम यह है कि जनता के इस दर्द को महसूस करने के बजाए भूमिगत हैं। हमारी आगोश में 35 लाख आबादी है। दो संसदीय क्षेत्रों रायबरेली व अमेठी के अधीन यहां छह विधायक हैं। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा यहां के लोगों को मिले, इस मकसद से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना शहर के निकट ही दरियापुर में की गई है। अरबों की लागत से तैयार एम्स में अबतक मरीजों को भर्ती कर इलाज की सुविधा शुरू नहीं हो सकी। ओपीडी संचालित हो रही थी, वह भी कोरोना संकट के बीच बंद कर दी गई। पिछले साल जब कोरोना संक्रमण बढ़ा तो गंभीर रोगियों के इलाज के लिए रेल कोच फैक्ट्री लालगंज परिसर में लेवल टू के हॉस्पिटल की स्थापना की गई। वर्तमान में यह ढाई सौ बेड का है, लेकिन वेंटिलेटर तक की सुविधा नहीं है। ऐसे में अति गंभीर रोगियों को बचा पाना मुश्किल है। जिला अस्पताल में कंक्रीट की इमारतें तो खड़ी कर दी गईं, लेकिन यहां भी वेंटिलेटर, चिकित्सकों व अन्य संसाधनों की कमी है। यह बात दीगर है कि हर साल अस्पताल की व्यवस्था के नाम पर लाखों के वारे-न्यारे हो जाते हैं।

जनता-जनार्दन की रहनुमाई करने वाले माननीय इस वक्त कहां हैं? यह सवाल जनता की जुबान पर है। जिला अस्पताल में बच्चे को दिखाने आई हरचंदपुर की प्रीती बोलीं की कोई मदद नहीं मिल रही। लालगंज के राधेश्याम हों या सलोन के रामबोध शर्मा, अथवा फूमती, इनका दर्द एक जैसा ही है। यह हाल तब हैं? जबकि पंचायत चुनाव में लोक लुभावन वादे कर वोट हासिल कर लिए गए। चुनाव खत्म, सारे हमदर्द गायब हो गए।

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